Book Title: Sramana 2000 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 21
________________ १५ सब की निगाहों में आचार्यवर्य के प्रसादमय मुखारविंद की अनोखी तस्वीर प्रतिबिंबित होती थी। ___दर्शन से प्रभावित कई महानुभावों ने चाहा की हम इन पुण्य-पुरुष आचार्यवर्य को वाग्दान करें। साधु-साध्वी सहित समस्त संघ ने वागदान का प्रारंभ किया। प्रत्येक आचार्यवर्य की पास में जाता था और यथाशक्ति वाग्दान करता था। प्रत्येक वाग्दान गुणानुरागी गुरुवर्य के चहरे पर नयी रौनक फैलाता था। वाग्दान में माला गिनाने के सामान्य नियम से संयम लेने की महाप्रतिज्ञा का समावेश था। दो-पाँच रुपये के दान से लेकर हजारों के दान का समावेश था। दो-पाँच एकाशन से ऐशी-ऐशी अठ्ठम अनेक मासक्षमण तक का समावेश था। आचार्यदेव को वाग दान देनेवाले सभी लोग आचार्यवर्य की आनंद रेखा से अनुपम संतोष की प्राप्ति करते थे। माला का वाग्दाता और करोड़ नमस्कार के जाप का वाग्दाता सबका संतोष एक-सा मालूम होता था। यद्यपि साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकादि समस्त संघ नमस्कार महामंत्र की धुन एवं अन्य अध्यात्मसूत्र का श्रवण कराने में रत था। फिर भी आचार्यवर्य को तो यह नमस्कार महामंत्र श्वासोच्छोवासवत् सिद्ध हो गया था। आप नमस्कार की धुन में तदाकार ही थे। इतना ही नहीं, किंतु आपके शरीर से भी भाग्यशाली महापुरुषों ने नमस्कार मंत्र सुना था। एक श्रावक कहते थे कि आपके स्वर्गवास के दो-चार दिन पहले ही उसने पूज्य गुरुदेव के चरणों से नमस्कार महामंत्र की आवाज सुनी थी। एक चिकित्सक ने बताया मैंने आचार्यवर्य के सीने पर स्टेथिस्कोप रखा था तो उसमें भी नमस्कारमहामंत्र सुनाई दिया था। यह बात हमें शायद चमत्काररूप लग सकती है। लेकिन मार्मिक आलोचना के बाद आचार्यवर्य की प्रत्येक जीवन घटना भी हमें चमत्कार से अधिक लगेगी। क्षमापना : 'खामेमि सव्वजीवे' उपशम प्रधान साधु जीवन की मुख्य ध्वनि है, सत्य क्षमापना। मैत्रीभाव की सर्वोत्कृष्टता से जब आत्मदल पल्लवित हो जाता है, तब वह चाहता है, प्राणी मात्र से सत्य क्षमापना। जो 'क्षमापना' का आकांक्षी है वह दूसरों को क्षमापना देने के लिये भी सदा उद्यत रहता है। ___ आचार्यवर्य का सहनशील आत्मदल सहज करुणा से आर्द्र था। गुनाही व्यक्ति को भी क्षमा प्रदान करते समय हम बहुत कष्ट का अनुभव करतें है। फिर अपने गुनाहों की ' क्षमायाचना' करना तो कितना मुश्किल होगा? आचार्यवर्य सिद्धांत के रहस्य के तह तक पहुँच गये थे। आप जानते थे कि जैन शासन का सार क्षमा याचन करने में एवं दूसरों को क्षमा प्रदान करने में है। क्षमा याचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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