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श्रीपाल-चरित्र पीड़ित थे। फिर भी वे सभी बहुत ही प्रसन्न मालुम होते थे। रानी को पुत्र के साथ कष्ट पूर्वक रास्ता काटते देख, उन्होंने रानी से पूछा कि – “तुम किसी भले घर की स्त्री मालूम होती हो, फिर भी तुम्हें इस तरह अकेले और पैदल क्यों चलना पड़ रहा है?" ।
किसी दुःख या सुख में समानता होने पर स्वाभाविक रूप से ही एक दूसरे के प्रति सहानुभूति का भाव उत्पन्न हो जाता है। रानी ने सोचा कि इन दुःखी मनुष्यों के सम्मुख अपना दुखड़ा रोने से किसी प्रकार की हानि नहीं हो सकती, इसलिये उसने सब सच्ची बातें उन लोगों को कह सुनायी। रानी की करुणा जनक बातें सुनते ही कोढ़ियों के हृदय द्रवित हो उठे। उन्होंने कहा कि- "तुम्हारा इस तरह चलना भय से खाली नहीं है। संभव है कि अजीत सेन के सैनिक तुम्हें खोजते हुए यहाँ तक आ पहुँचे और तुम दोनों को पकड़ ले जायँ। इसलिये यही उत्तम होगा, यदि तुम हमारे दल में मिल जाओ। फिर किसी तरह का भय न रहेगा। जब तक हम जीते हैं, किसकी मजाल है कि तुम्हारी ओर आँख उठा कर भी कोई देख सके?"
कोढ़ियों की इन बातों से रानी को बहुत हिम्मत आई। उनके दल में सम्मिलित होते उसे आन्तरिक संकोच
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