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(१५) साधु पर्याय पालन कर आलोचना नहीं करते हुवे काल कर कहा जाता है।
(उ०) हे गौतम । उक्त साधु आलोचना नहीं करते हुवे कालकर छाटा लातंक नामके देवलोक मैं कीलवेपो देव पणे उत्पन्न होता है वहां उत्कृष्ट तेरह सागरोपमकि स्थिति होती है परन्तु परलोकका आराधो नहीं होता है ।
(१४) हे भगवान् । ग्रामादिकमें जो सज्ञीपांचेन्द्रिय तीर्थच प्रर्याप्ता होता है यथा जलचर स्थलचर खेचर इन्होंके अन्दर कितनेक तीर्यचोंको शुपाध्यधशाय; निर्मल परणाम विशुद्ध लेश्या होनेसे ज्ञानावर्णीय कमका क्षोपशम होनेसे जाति स्मरण ज्ञान होता है वह पूर्व मनुष्य के भवमें पहेला मिथ्यात्वमें तीर्य चका आयुष्य बान्ध लेने के बादमें सम्यक्त्वके साथ श्रावक व्रत लीया था उन्हों को जातिम्मरणसे जानके वह तीर्यचके भवमें आप स्वयमेव श्रावक व्रतोंकों धारण करता है बहुतसे कालनियम व्रतशील गुण पोषदोपवासकर अनसनकर समाधि पूर्वक काल करके कांहापर जाता हैं।
(उ) हे गौतम ! उक्त तीर्यच वहांसे समाधि पूर्वक कालकर माठवा सहस्त्र नामका देवलोकमे उत्कृष्ट अठारा सागरोपम कि स्थितिमें देवपणे उतान्न होता है और परभवका आराधी होता है।
(१५) हे भगवान् ! ग्रामादिकके अन्दर मो अनीवकामति अर्थात गौसाला मति साघु होता है वह दोय घरोंके अन्तरसे मिक्षा लेनेवाला, तीन घरोके भन्तरसे भिक्षा एवं सात घरोके अन्तरसे भिक्षा लेने वाला होता है । कमलके विटोंका भक्षण करे, बहुत घरोंसे भिक्षा ग्रहन करे। विद्युत् चमके को मिला।