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संस्कृति के दो प्रवाह ध्यानलीन है और उसके दोनों कंधों पर ऋषभ की भांति केशराशि लटकी हुई है । डा० क लिदास नाग ने उसे जैन-मूर्ति के अनुरूप बताया है। वह लगभग दस हजार वर्ष पुरानी है।' अपोलो रेशफ (यूनान) की धड़मूर्ति भी वैसी ही है । ये भी श्रमण संस्कृति की सुदीर्घ प्राचीनता के प्रमाण
मोहनजोदड़ो से प्राप्त मूर्तियों या उनके उपासकों के सिर पर नागफण का अंकन है। वह नागवंश के सम्बन्ध का सूचक है । सातवें तीर्थङ्कर भगवान् सुपार्श्व के सिर पर सर्प-मण्डल का छत्र था।'
नागजाति वैदिककाल से पूर्ववर्ती भारतीय जाति थी। यक्ष, गन्धर्व, किन्नर और द्राविड जातियां भी मूलतः भारतीय और श्रमणों की उपासक थीं। उनकी सभ्यता और संस्कृति ऋग्वैदिक सभ्यता और संस्कृति से पूर्ववर्ती और स्वतन्त्र थी। उनके उपास्य ऋषभ, सुपार्श्व आदि तीर्थङ्कर भी प्राग्-वैदिककाल में हुए थे।
पूर्वोक्त दोनों साधनों (साहित्य और पुरातत्त्व) से हम इस निष्कर्ष पर पहुचते हैं कि श्रमणपरम्परा वैदिककाल से पूर्ववर्ती है।
१. Discovery of Asia, plate No. 5. २. (क) आदि तीर्थङ्कर भगवान् ऋषभदेव, पृ० १४० के बाद । (ख) R. G. Marse-The historic importance of bronze statue
of Reshief, discovered in Syprus. (Bulletin of the Deccan College Research Institute, Poona, Vol. XIV, pp
230-236). ३. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व ३, सर्ग ५, श्लोक ७८-८० : तीर्थाय नमः इत्युक्त्वा तत्र सिंहासनोत्तमे । उपाविशज्जगन्नाथोऽतिशयरुपशोभितः ॥ पृथ्वीदेव्या तदा स्वप्ने दृष्टं तादग्महोरगम् । शको विचक्रे भगवन्मूलिच्छवमिवापरम् ।। तदादि चाभूत्समवसरणेष्वपरेष्वपि ।
नाग एकफणः पञ्चफणो नवफणोऽथवा ॥ ४. सर जॉन मार्शल : 'मोहनजोदड़ो', भाग १, अंक ८, पृ० ११०-११२ ।
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