Book Title: Sanskruti ke Do Pravah
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 262
________________ २५५ संस्कृति के दो प्रवाह आत्मिक-तीनों दृष्टियों से आवश्यक है। (६) आत्मा अपने आपमें परिपूर्ण है। हेय-हेतुओं का प्रत्याख्यान नहीं होता, तभी वह अपूर्ण होती है। उनका प्रत्याख्यान होते-होते क्रमशः उसकी पूर्णता का उदय हो जाता है। इसलिए प्रत्याख्यान भी आवश्यक कर्म है। उत्तराध्ययन में प्रत्याख्यान के कुछ विशेष उदाहरण भी प्राप्त होते हैं। उनके नाम और परिणाम इस प्रकार हैंनाम परिणाम (१) संभोग प्रत्याख्यान रस विजय (२) उपधि प्रत्याख्यान वस्त्र विजय (३) आहार प्रत्याख्यान क्षुधा विजय (४) कषाय प्रत्याख्यान सुख-दुःख में सम रहने की शक्ति का विकास (५) योग प्रत्याख्यान आत्म-साक्षात्कार (६) शरीर प्रत्याख्यान पूर्णता की उपलब्धि (७) सहाय प्रत्याख्यान स्वतंत्रता का विकास (८) भक्त प्रत्याख्यान संसार का अल्पीकरण (8) सद्भाव प्रत्याख्यान वीतरागता' ये प्रत्याख्यान दैनिक आवश्यक कर्म नहीं हैं, किन्तु विशेष साधना के अंग हैं। - १. उत्तराध्ययन, २९३३-४१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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