Book Title: Sanskruti ke Do Pravah
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 254
________________ योग २४७ ज्ञान-लाभ, आचार-विशुद्धि, सम्यक् आराधना आदि विनय के परिणाम हैं । " चित्त-समाधि का लाभ, ग्लानि का अभाव, प्रवचन- वात्सल्य आदि वैयावृत्त्य के परिणाम हैं। " प्रज्ञा का अतिशय अध्यवसाय की प्रशस्तता, उत्कृष्ट संवेग का उदय, प्रवचन की अविच्छिन्नता, अतिचार-विशुद्धि, संदेह - नाश, मिथ्यावादियों के भय का अभाव आदि स्वाध्याय के परिणाम हैं ।" कषाय से उत्पन्न ईर्ष्या, विषाद, शोक आदि मानसिक दुःखों से बाधित न होना, सर्दी, गर्मी, भूख प्यास आदि शरीर को प्रभावित करने वाले कष्टों से बाधित न होना ध्यान के परिणाम हैं ।" 2 निर्ममत्व, निर्भयता, जीवन के प्रति अनासक्ति, दोषों का उच्छेद, मोक्ष - मार्ग में तत्परता आदि व्युत्सर्ग के परिणाम हैं ।" १. तत्त्वार्य. ६।२३ श्रुतसागरीय वृत्ति । २. वही, ६।२४ श्रुतसागरीय वृत्ति । ३. वही, ६।२४ श्रुतसागरीय वृत्ति । ४. ध्यानशतक, १०५-१०६ । ५. तत्त्वार्थ, ६।२६ श्रुतसागरीय वृत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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