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योग
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ज्ञान-लाभ, आचार-विशुद्धि, सम्यक् आराधना आदि विनय के परिणाम हैं । "
चित्त-समाधि का लाभ, ग्लानि का अभाव, प्रवचन- वात्सल्य आदि वैयावृत्त्य के परिणाम हैं।
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प्रज्ञा का अतिशय अध्यवसाय की प्रशस्तता, उत्कृष्ट संवेग का उदय, प्रवचन की अविच्छिन्नता, अतिचार-विशुद्धि, संदेह - नाश, मिथ्यावादियों के भय का अभाव आदि स्वाध्याय के परिणाम हैं ।"
कषाय से उत्पन्न ईर्ष्या, विषाद, शोक आदि मानसिक दुःखों से बाधित न होना, सर्दी, गर्मी, भूख प्यास आदि शरीर को प्रभावित करने वाले कष्टों से बाधित न होना ध्यान के परिणाम हैं ।"
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निर्ममत्व, निर्भयता, जीवन के प्रति अनासक्ति, दोषों का उच्छेद, मोक्ष - मार्ग में तत्परता आदि व्युत्सर्ग के परिणाम हैं ।"
१. तत्त्वार्य. ६।२३ श्रुतसागरीय वृत्ति । २. वही, ६।२४ श्रुतसागरीय वृत्ति । ३. वही, ६।२४ श्रुतसागरीय वृत्ति । ४. ध्यानशतक, १०५-१०६ । ५. तत्त्वार्थ, ६।२६ श्रुतसागरीय वृत्ति ।
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