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विदेशों में जैन धर्म
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कालकाचार्य सुवर्णभूमि (सुमात्रा) में गए थे। उनके प्रशिष्य श्रमण सागर अपने गणसहित वहां पहले ही विद्यमान थे।'
क्रौंचद्वीप', सिंहलद्वीप (लंका) और हंसद्वीप में भगवान् सुमतिनाथ की पादुकाएं थीं। पारकर देश और कासहद में भगवान् ऋषभदेव की प्रतिमा थी।
ऊपर के संक्षिप्त विवरण से हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि जैन धर्म का प्रसार हिन्दुस्तान से बाहर के देशों में भी हुआ था। उत्तरवर्ती श्रमणों की उपेक्षा व अन्यान्य परिस्थितियों के कारण वह स्थायी नहीं रह
सका।
१. (क) उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा १२० ।
(ख) उत्तराध्ययन, बृहद्वृत्ति, पत्र १२७-१५८ । (ग) वही, चूणि, पृ० ८३-८४ । (घ) वही, वृत्ति (सुखबोधा), पृ० ५० । (ड) बृहत्कल्पभाष्य, भाग १, पृ० ७३,७४ ।
(च) निशीथचूणि, उद्देशक १० । २. कर्नल विल्फर्ड के अनुसार क्रौंचद्वीप का सम्बन्ध बाल्टिक समुद्र के पार्श्ववर्ती प्रदेश से है (एशियाटिक रिसचेंज, खण्ड ११, पृ १४) । स्वर्गीय राजवाड़े के मतानुसार घृत समुद्र के पश्चिम में क्रौंचद्वीप था। जिस प्रदेश में वर्तमान समरकन्द तथा बुखारा शहर बसे हुए हैं, वह प्रदेश वास्तव में 'क्रौंचद्वीप' कहलाता था। ३. विविधतीर्थकल्प, पृ० ८५
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