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संस्कृति के दो प्रवाह
शक्तिशाली बनाने के लिए तीर्थङ्कर की आवश्यकता थी। भगवान् महावीर से ठीक पहले हमें तीर्थङ्कर के रूप में केवल एक पार्श्व का ही अस्तित्व मिलता है, किन्तु भगवान् महावीर के काल में हम छह तीर्थंकरों का अस्तित्व पाते हैं। कुछ जैन विद्वान् यह कहते हैं कि एक तीर्थङ्कर जैसी धर्म-व्यवस्था करते हैं, वैसी ही दूसरे तीर्थङ्कर करते हैं। किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से इसका बहुत मूल्य नहीं है। एक तीर्थंकर ने कहा, उसका निरूपण दूसरा तीर्थङ्कर करे तो वस्तुतः वह तीर्थङ्कर ही नहीं होता। जिसका मार्ग पूर्व तीर्थङ्कर से भिन्न होता है, यानी सर्वथा सदृश नहीं होता, उसी को 'तीर्थङ्कर' कहा जाता है । हमारी यह स्थापना निराधार नहीं है। इसकी यथार्थता प्रमाणित करने के लिए हमें तीर्थङ्करों के शासन-भेद का अध्ययन करना होगा।
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