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पार्श्व और महावीर का शासन-भेद
१७६ आचार्य वट्टकेर ने मूलगुण २८ माने हैं१-५. पांच महाव्रत २४. अस्नान ६-१०. पांच समितियां २५. भूमिशयन ११-१५. पांच इन्द्रिय-विजय २६. दन्तघर्षण का वर्जन १६-२१. षड् आवश्यक २७. स्थिति भोजन २२. केशलोच
२८. एक-भक्त । २३. अचेलकता
मूलगुणों की संख्या सब तीर्थङ्करों के शासन में समान नहीं रही, इसका समर्थन भगवान् महावीर के एक निम्न प्रवचन से होता है
__ "आर्यो ! .. मैंने पांच महाव्रतात्मक, सप्रतिक्रमण और अचेलधर्म का निरूपण किया है। आर्यो ! . . मैंने नग्नभाव, मुण्डभाव, अस्नान, दन्तप्रक्षालन-वर्जन, छत्र-वर्जन, पादुका-वर्जन, भूमि-शय्या, केश-लोच आदि का निरूपण किया है।"
__भगवान् महावीर के जो विशेष विधान हैं, उनका लम्बा विवरण स्थानांग, ६।६२ में है। (४) सचेल और अचेल
गौतम और केशी के शिष्यों के मन में एक वितर्क उठा था
“महामुनि वर्द्धमान ने जो आचार-धर्म की व्यवस्था की है, वह अचेलक है और महामुनि पाश्वं ने जो यह आचार-धर्म की व्यवस्था की है, वह वर्ण आदि से विशिष्ट तथा मूल्यवान वस्त्र वाली है। जब कि हम एक ही उद्देश्य से चले हैं तो फिर इस भेद का क्या कारण है ?" केशी ने गौतम के सामने यह जिज्ञासा प्रस्तुत की और पूछा-"मेधाविन् ! वेष के इन प्रकारों में तुम्हें सन्देह कैसे नहीं होता ?"
___ केशी के ऐसा कहने पर गौतम ने इस प्रकार कहा-"विज्ञान द्वारा यथोचित जान कर ही धर्म के साधनों उपकरणों की अनुमति दी गई है। लोगों को यह प्रतीति हो कि ये साधु हैं, इसलिए नाना प्रकार के उपकरणों की परिकल्पना की गई है। जीवन-यात्रा को निभाना और 'मैं साधु हूं,' ऐसा ध्यान आते रहना-वेष-धारण के इस लोक में ये प्रयोजन हैं। यदि मोक्ष की वास्तविक साधना की प्रतिज्ञा हो तो निश्चय-दृष्टि में उसके
१. मूलाचार, ११२-११३ । २. स्थानांग, ६।२।
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