________________
फोग
२१७
कहलाता है; एक जातीय अनेक गच्छों को कुल कहा जाता
८. संघ (साधु, साध्वी, श्रावक तथा श्राविका') का वैयावत्त्य । (६) साधु का वैयावृत्त्य (१०) समनोज्ञ का वैयावृत्त्य (समान सामाचारी वाले तथा एक ___- मण्डली में भोजन करने वाले साधु 'समनोज्ञ' कहलाते हैं।')
इस वर्गीकरण में स्थविर और सार्मिक-ये दो प्रकार नहीं हैं। उनके स्थान पर साधु और समनोज्ञ-ये दो प्रकार हैं। गण और कुल की भांति संघ का अर्थ भी साधु-परक ही होना चाहिए। ये दसों प्रकार केवल साधु-समूह के विविध पदों या रूपों से सम्बद्ध हैं। . ... वैयावृत्त्य (सेवा) का फल तीर्थङ्कर-पद की प्राप्ति बतलाया गया है। व्यावहारिक सेवा ही तीर्थ को संगठित कर सकती है । इस दष्टि से भी इसका बहुत महत्त्व है। (४) स्वाध्याय
यह आभ्यन्तर तप का चौथा प्रकार है। उसके पांच भेद हैं(१) वाचना, (२) प्रच्छना, (३) परिवर्तना, (४) अनुप्रेक्षा और (५) धर्मकथा।
तत्त्वार्थ सूत्र (२५) में इनका क्रम और एक नाम भी भिन्न है(१) वाचना, (२) प्रच्छना, (३) अनुप्रेक्षा, (४) आम्नाय और (५) धर्मोपदेश।
इनमें परिवर्तना के स्थान में आम्नाय है । आम्नाय का अर्थ है 'शुद्ध उच्चारण पूर्वक बार बार पाठ करना ।" १. तत्त्वार्थ, ६।२४ भाष्यानुसारि टीका : कुलमाचार्यसंततिसंस्थितिः, एकाचार्यप्रणय" साधुसमूही गच्छः, बहूनां गच्छानां एकजातीयानां समूहः कुलम् । २. वही, ६।२४ . भाष्यानुसारि टीका : संघश्चतुर्विधः---साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविकाः। .. ३. तत्त्वार्थ, १।२४ भाष्यानुसारि टीका : द्वादशविधसम्भोगभाजः समनोज्ञज्ञानदर्शन... चारित्राणि मनोज्ञानि सह मनोजः समनोज्ञाः । ४. उत्तराध्ययन, ३५।४३ । ५. देखिए - उत्तराध्ययन २६।१८ का टिप्पण ।.... ६. तत्त्वार्थ, ६।२५, श्रुतसागरीय वृत्ति : अष्टस्थानोच्चारविशेषेण यच्छुद्धं घोषणं
पुनः पुनः परिवर्तनं स आम्नाय कथ्यते ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org