Book Title: Sanskruti ke Do Pravah
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 240
________________ योग २३३ है। शुद्ध विचार-प्रवाह के तीन प्रकार हैं-तेजस् लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या। तेजस् लेश्या से पद्म लेश्या विशुद्ध होती है और पद्म लेश्या से शुक्ल लेश्या विशुद्ध होती है। एक-एक लेश्या के परिणाम भी मंद, मध्यम और तीव्र होते हैं। उत्तराध्ययन में मानसिक विशुद्धि का क्रम समझाते हुए बताया गया है 'जो मनुष्य नम्रता से बर्ताव करता है, जो चपल होता है, जो माया से रहित है, जो अकुतूहली है, जो विनय करने में निपुण है, जो दान्त है, जो समाधि-युक्त है, जो उपधान (श्रुत अध्ययन करते समय तप) करने वाला है, जो धर्म में प्रेम रखता है, जो धर्म में दृढ़ है, जो पापभीर है, जो मुक्ति का गवेषक है-जो इन सभी प्रवृत्तियों से युक्त है, वह तेजोलेश्या में परिणत होता है।' - 'जिस मनुष्य के क्रोध, मान, माया और लोभ अत्यन्त अल्प हैं, जो प्रशान्त-चित्त है, जो अपनी आत्मा का दमन करता है, जो समाधि-युक्त है, जो उपधान करने वाला है, जो अत्यल्प भाषी है, जो उपशान्त है, जो जितेन्द्रिय है-जो इन सभी प्रवृत्तियों से युक्त है, वह पद्म लेश्या में परिणत होता है।' 'जो मनुष्य आत और रौद्र-इन दोनों ध्यानों को छोड़कर धर्म और शुक्ल-इन दो ध्यानों में लीन रहता है, जो प्रशान्त-चित्त है, जो अपनी आत्मा का दमन करता है, जो समितियों से समित है, जो गुप्तियों से गुप्त है, जो उपशान्त है, जो जितेन्द्रिय है-जो इन सभी प्रवृत्तियों से पुक्त है, वह सराग हो या वीतराग, शुक्ल लेश्या में परिणत होता है।" (११) लिङ्ग-सूदूर प्रदेश में अग्नि होती है, उसे आंखों से नहीं देखा जा सकता, किन्तु धुंआ देखकर उसे जाना जा सकता है। इसीलिए बूंआ उसका लिङ्ग है। ध्यान व्यक्ति की आन्तरिक प्रवृत्ति है, उसे नहीं देखा जा सकता, किन्तु उस व्यक्ति की सत्य विषयक आस्था देखकर उसे माना जा सकता है, इसीलिए सत्य की आस्था उसका लिङ्ग है-हेतु है।' आगमों में इसके चार लिङ्ग (लक्षण) बतलाए गए हैं। 'ध्यान के प्रकार' शीर्षक देखिए। (१२) फल-धर्मध्यान का प्रथम फल आत्म-ज्ञान है। जो सत्य १. उत्तराध्ययन, ३४।२७-३२ । २. ध्यानशतक, ६७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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