________________
योग
२०७
के लिए है। उससे संकल्प-विकल्प या आर्तध्यान की वृद्धि नहीं होनी चाहिए। (२) अवमौदर्य
यह बाह्य तप का दूसरा प्रकार है। इसका अर्थ है 'जिस व्यक्ति की जितनी आहार मात्रा है, उससे कम खाना।' इसके पांच प्रकार किए गए
१. द्रव्य की दृष्टि से अवमौदर्य । २. क्षेत्र की दृष्टि से अवमौदर्य । ३. काल की दृष्टि से अवमौदर्य । ४. भाव की दृष्टि से अवमौदर्य । ५. पर्यव की दृष्टि से अवमौदर्य । औपपातिक में इसका विभाजन इस प्रकार है-- १. द्रव्यत: अवमौदर्य । २. भावतः अवमौदर्य । द्रव्यतः अवमौदर्य के दो प्रकार हैं---- १. उपकरण अवमौदर्य। २. भक्त-पान अवमौदर्य । भक्त-पान अवमौदर्य के अनेक प्रकार हैं१. आठ ग्रास खाने वाला अल्पाहारी होता है। २. बारह ग्रास खाने वाला अपार्द्ध अवमौदर्य होता है। ३. सोलह ग्रास खाने वाला अर्द्ध अवमौदर्य होता है। ४. चौबीस ग्रास खाने वाला पौन अवमौदर्य होता है। ५. इकतीस ग्रास खाने वाला किंचित् ऊन अवमौदर्य होता है।'
यह कल्पना भोजन की पूर्ण मात्रा के आधार पर की गई है। पुरुष के आहार की पूर्ण मात्रा बत्तीस ग्रास और स्त्री के आहार की पूर्ण मात्रा अट्ठाइस ग्रास है। ग्रास का परिमाण मुर्गी के अण्डे अथवा हजार चावल जितना बतलाया गया है।
२. औपपातिक, सूत्र १६ । ३. मूलाराधना, ३३२११ । ४. औपपातिक, सूत्र १६ । ५. मूलाराधना, दर्पण, पृ० ४२७ : ग्रासोश्रावि सहस्रतंदुलमितः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org