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योग
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बोधि-दुर्लभ भावना
जागो ! क्यों नहीं जाग रहे हो ? बोधि बहुत दुर्लभ है।' धर्म भावना
धर्म जीवन का पाथेय है। यात्री के पास पाथेय होता है तो उसकी यात्रा सुख से सम्पन्न हो जाती है। इसी प्रकार जिसके पास धर्म का पाथेय होता है, उसकी जीवन यात्राएं सुख से सम्पन्न होती हैं। मंत्री भावना
सब जीव मेरे मित्र हैं।' प्रमोद भावना
तुम्हारा आर्जव आश्चर्यकारी है और आश्चर्यकारी है तुम्हारा मार्दव । उत्तम है तुम्हारी क्षमा और उत्तम है तुम्हारी मुक्ति । कारुण्य भावना
बन्धन से मुक्त करने का प्रयत्न और चिन्तन । माध्यस्थ्य भावना
समझाने-बुझाने पर भी सामने वाला व्यक्ति दोष का त्याग न करे, उस स्थिति में उत्तेजित न होना, किन्तु योग्यता की विचित्रता का चिन्तन करना।
भावना-योग के द्वारा वांछनीय संस्कारों का निर्माण कर अवांछनीय संस्कारों का उन्मूलन किया जा सकता है। भावना-योग से विशुद्ध ध्यान का क्रम, जो विच्छिन्न होता है, वह पुनः संध जाता है। स्थानयोग
पतंजलि के अष्टाङ्ग-योग में तीसरा अङ्ग आसन है । जैन योग में
१. सूत्रकृताङ्ग, ११२।१। २. उत्तराध्ययन, १६।१८-२१ । ३. वही, ६।२। ४. वही, ६।५७ । ५. वही, १३।१६। ६. वही, १३३२३ । ७. योगशास्त्र, ४११२२
आत्मानं भावयन्नाभिर्भावनाभिर्महामतिः । त्रुटितामपि संधत्ते, विशुद्धध्यानसन्ततिम् ॥ .
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