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योग
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गृद्धोडीन -- उड़ते हुए गीध के पंखों की भांति बाहों को फैला कर खड़े रहना ।'
निषीदन स्थानयोग
बैठ कर किए जाने वाले स्थानों को 'निषीदन स्थानयोग' कहा जाता है । उसके अनेक प्रकार हैं । स्थानांग में पांच प्रकार की निषद्याएं बतलाई गई हैं' -
१. उत्कटुका--उकडू आसन - पुतों को ऊंचा रख कर पैरों के बल पर बैठना ।
२. गोदोहिका -- गाय को दुहते समय बैठने का आसन । एड़ियों को उठा कर पंजे के बल पर बैठना ।
३. समपादपुता - पैरों और पुतों को सटा कर भूमि पर बैठना । ४. पर्यङ्का -- पैरों को मोड़ पिंडलियों के ऊपर जांघों को रख कर बैठना और एक हस्ततल पर दूसरा हस्ततल जमा नाभि के पास रखना ।
५. अर्द्ध-पर्यङ्का-एक पैर को मोड़, पिंडली के ऊपर जांघ को रखना और दूसरे पैर के पंजों को भूमि पर टिका कर घुटने को ऊपर की ओर रखना ।
बृहत्कल्पभाष्य' में निषद्या के पांच प्रकार कुछ परिवर्तन के साथ
१. मूलाराधना, ३।२२३, विजयोदया, वृत्ति : गिद्धोली -गृद्धस्योर्ध्वगमनमिव बाहू प्रसार्यावस्थानम् ।
२. स्थानांग, ५।४२ : पंच निसिज्जाओ प० तं०-उक्कुडुती गोदोहिता समपादपुता पलितंका अद्धपलितंका |
३. [क] स्थानांग, ५७४२ वृत्ति: आसनालग्नपुतः पादाभ्यामवस्थित उत्कुटुकस्तस्य या सा उत्कुटका
[ख] मूलाराधना, ३।२२४, वृत्ति ।
४. स्थानांग, ५।४२ वृत्ति : गोर्दोहनं गोदोहिका तद्वद्या याऽसौ गोदोहिका । ५. मूलाराधना, ३।२२४, वृत्ति : गोदोहगा - गोर्दोहे आसनमिव पाष्णिद्वयमुत्क्षिप्याग्रपादाभ्यामासनम् ।
६. स्थानांग, ५०४२, वृत्ति: समौ-समतया भूलग्नौ पादी च पुतौ च यस्यां सा समपादपुता ।
७. बृहत्कल्प भाष्य, गाथा ५६५३, वृत्ति: निषद्या नाम उपवेशनविशेषाः ताः पंचविधा:, तद्यथा— समपादपुता गोनिषधिका हस्तिशुण्डिका पर्यङ्काऽर्धपर्यङ्का चेति ।
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