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सस्कृति के दो प्रवाह पलब्धि । आत्मा का स्वरूप है-ज्ञान, सम्यक्त्व और वीतरागता । सम्यक्त्व विकृत, ज्ञान आवृत और वीतरागता अप्रकटित होती है, तब तक हर व्यक्ति के लिए अपनी आत्मा साध्य होती है और जब सम्यक्त्व मल रहित, जान अनावृत और वीतरागता प्रकट होती है, तब वह स्वयं सिद्ध हो जाती
___साध्य की सिद्धि के लिए जिन हेतुओं का आलम्बन लिया जाता है, उन्हें 'साधन' और उनके अम्यास क्रम को 'साधना' कहा जाता है।
साधन
मोक्ष के साधन चार हैं-१. ज्ञान, २. दर्शन, ३. चारित्र और ४. उप ।' ज्ञान से सत्य जाना जाता है और दर्शन (सम्यक्त्व) से सत्य के प्रति श्रद्धा होती है, इसलिए ये दोनों सत्य की प्राप्ति के साधन हैं। चरित्र से आने वाले कर्मों का निरोध होता है और तप से पूर्व संचित कर्म क्षीण होते है, इसलिए ये दोनों सत्य की उपलब्धि के साधन हैं। ये चारों समूदित रूप ते मोक्ष या आत्मोपलब्धि के साधन हैं।' साधना
मोक्ष के साधन चार हैं, इसलिए उसकी साधना के भी मुख्य प्रकार वार हैं-१. ज्ञान की साधना, २. दर्शन की साधना, ३. चारित्र की साधना और ४. तप की साधना।
(१) ज्ञान की साधना के पांच अंग हैं१. वाचना- पढ़ाना । २. प्रतिपच्छा-- प्रश्न पूछना। ३. परिवर्तना- पुनरावृत्ति करना। ४. अनुप्रेक्षा- चिन्तन करना।
५. धर्मकथा- धर्म-चर्चा करना।
ज्ञान की आराधना करने से अज्ञान क्षीण होता है।' ज्ञान-सम्पन्न नीव संसार में विनष्ट नहीं होता। जिस प्रकार धागा पिरोई सूई गिरने
र भी गुम नहीं होती, उसी प्रकार ज्ञान-युक्त जीव संसार में विलुप्त नहीं होता। इस प्रकार भगवान महावीर ने ज्ञान का उतना ही समर्थन किया, जतना कि चारित्र का। इसलिए जैन दर्शन को हम केवल ज्ञान-योग का समर्थक नहीं कह सकते। १. उत्तराध्ययन, २८।३।
३. वही, २६।१८-२४ । २. वही, २८।३५ ।
४. वही, २९५६।
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