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जैन धर्म : हिन्दुस्तान के विविध अंचलों में तट पर रहने लगे। कुछ काल बाद वे उत्तर भारत में फैल गए थे। हैहयवंश की उत्पत्ति नर्मदा-तट पर स्थित माहिष्मती के राजा कार्तवीर्य से मानी जाती है। भगवान् महावीर का श्रमणोपासक चेटक हैहय-वंश का ही था। दक्षिण भारत
दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रभाव भगवान् पार्श्व और महावीर से पहले ही था। जिस समय द्वारका का दहन हुआ था, उस समय भगवान् अरिष्टनेमि पल्हव देश में थे। वह दक्षिणापथ का ही एक राज्य था। उत्तर भारत में जब दुभिक्ष हुआ, तब भद्रबाहु दक्षिण में गए। यह कोई आकस्मिक संयोग नहीं, किन्तु दक्षिण भारत में जैन धर्म के सम्पर्क का सूचन है। मध्यकाल में भी कलभ, पाण्डय, चोल, पल्लव, गंग, राष्ट्रकूट, कदम्ब आदि राज-वंशों ने जैन धर्म को बहुत प्रसारित किया था।
ईसा की सातवीं शताब्दी के पश्चात् बंगाल और बिहार आदि पूर्वी प्रान्तों में जैन धर्म का प्रभाव क्षीण हुआ। उसमें भी विदेशी आक्रमण का बहुत बड़ा हाथ है। दुर्भिक्ष के कारण साधुओं का विहार वहां कम हुआ, उससे भी जैन धर्म को क्षति पहुंची।
१. पद्मपुराण, प्रथम सृष्टि खण्ड, अध्याय १२, श्लोक ४१२ :
नर्मदासरितं प्राप्य, स्थिताः दानवसत्तमाः । २. एपिग्राफिका इण्डिका, भाग २, भाग २, पृ० ८ । ३. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक २२६ । ४. (क) हरिवंशपुराण, सर्ग ६४, श्लोक १। ।
(ख) उत्तराध्ययन, सुखबोधा, पत्र ३६ । .. .
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