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संस्कृति के दो प्रवाह
वासेट्ठ ! मनुष्यों में जो कोई गौ-रक्षा से जीविका करता है, उसे कृषक जानो न कि ब्राह्मण ।
वासेठ ! मनुष्यों में जो कोई नाना शिल्पों से जीविका करता है, उसे शिल्पी जानो न कि ब्राह्मण ।
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वासेठ ! मनुष्यों में जो कोई व्यापार से जीविका करता है, उसे बनिया जानो न कि ब्राह्मण ।
वासेट्ठ ! मनुष्यों में जो कोई धनुविद्या से जीविका करता है, उसे योद्धा जानो न कि ब्राह्मण ।
वाट्ठ ! ममुष्यों में जो कोई चोरी से जीविका करता है, उसे चोर जानो न कि ब्राह्मण ।
वाट्ठ ! मनुष्यों में जो कोई पुरोहिताई से जीविका करता है, उसे पुरोहित जानो न कि ब्राह्मण ।
वासेट्ठ ! मनुष्यों में जो कोई ग्राम या राष्ट्र का उपभोग करता है, उसे राजा जानो न कि ब्राह्मण ।
ब्राह्मणी माता की योनि से उत्पन्न होने से ही मैं (किसी को) ब्राह्मण नहीं कहता । जो सम्पत्तिशाली है ( वह) धनी कहलाता है, जो. अकिंचन है, तृष्णा रहित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं ।
जो रस्सी रूपी क्रोध को, प्रग्रह रूपी तृष्णा को, मुंह पर के जाल रूपी मिथ्या धारणाओं को और जुआ रूपी अविद्या को तोड़ कर बुद्ध हुआ है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ ।
जो कटुवचन, वध और बन्धन को बिना द्वेष के सह लेता है, क्षमाशील -क्षमा ही जिसकी सेना और बल है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं ।
पानी में लिप्त न होने वाले कमल की तरह और आरे की नोक पर न टिकने वाले सरसों के दाने की तरह जो विषयों में लिप्त नहीं होता, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं ।
जो गृहस्थ, प्रब्रजित दोनों से अलग है, जो बेघर हो विहरण करता है, जिसकी आवश्यकताएं थोड़ी हैं, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं ।
जो स्थावर और जंगम सब प्राणियों के प्रति दण्ड का त्याग कर न तो स्वयं उनका वध करता है और न दूसरों से (वध) कराता है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं ।
जो विरोधियों में अविरोध रहता है, हिंसकों में शान्त रहता है और आसक्तों में अनासक्त रहता है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं ।
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