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श्रमण और वैदिक परम्परा की पृष्ठभूमि
श्रमण निर्वाण को नहीं मानते थे । '
इस प्रकार हम देखते हैं कि (१) दान, (२) स्नान, (३) कर्तृवाद, ( ४ ) आत्मा और परलोक ( ५ ) स्वर्ग और नरक तथा (६) निर्वाण - ये सभी विषय श्रमण परम्परा की एकसूत्रता के व्याप्त लक्षण नहीं हैं । इनमें से कुछ विषय श्रमण और वैदिक परम्पराओं में भी समान हैं ।
इसीलिए इन विषयों को श्रमण और वैदिक धारा की विभाजनरेखा तथा श्रमण परपम्परा की एकसूत्रता की व्याप्ति के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता ।
१. दीघनिकाय, ११२, पृ० २२ ।
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