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संस्कृति के दो प्रवास
ब्राह्मणों के ब्रह्मत्व पर तीखा व्यंग करते हुए अजातशत्रु ने गाग्र से कहा था-"ब्राह्मण क्षत्रिय की शरण में इस आशा से जाएं कि या मुझे ब्रह्म का उपदेश करेगा, यह तो विपरीत है । तो भी मैं तुम्हें उसक ज्ञान कराऊंगा ही।
प्रायः सभी मैथिल नरेश आत्मविद्या को आश्रय देते थे।
एम० विन्टरनिटज ने इस विषय पर बहत विवेचना की है उन्होंने लिखा है-“भारत के इन प्रथम दार्शनिकों को उस युग वे पुरोहितों में खोजना उचित न होगा, क्योंकि पुरोहित तो यज्ञ को एक शास्त्रीय ढांचा देने में दिलोजान से लगे हुए थे जबकि इन दार्शनिकों क ध्येय वेद के अनेकेश्वरवाद को उन्मूलित करना ही था। जो ब्राह्मण यज्ञ के आडम्बर द्वारा ही अपनी रोटी कमाते हैं, उन्हीं के घर में ही कोई ऐसा व्यक्ति जन्म ले ले, जो इन्द्र तक की सत्ता में विश्वास न करे देवताओं के नाम से आहुतियां देना जिसे व्यर्थ नजर आए, बुद्धि नही मानती । सो अधिक संभव नहीं प्रतीत होता है कि यह दार्शनिक चिन्तन उन्हीं लोगों का क्षेत्र था जिन्हें वेदों में पुरोहितों का शत्रु अर्थात् अरि कंजूस, 'ब्राह्मणों को दक्षिणा देने से जी चुराने वाला' कहा गया है।
'उपनिषदों में तो और कभी-कभी ब्राह्मणों में भी, ऐसे कितने ही स्थल आते हैं, जहां दर्शन अनुचिन्तन के उस यूग-प्रवाह में क्षत्रियों की भारतीय संस्कृति को देन स्वतः सिद्ध हो जाती है।
___ 'कौशीतकी ब्राह्मण (२६,५) में प्राचीन भारत की साहित्यिक गतिविधि की निदर्शक एक कथा, राजा प्रतर्दन के सम्बन्ध में आती है कि किस प्रकार वह मानी ब्राह्मणों से यज्ञ-विद्या के विषय में जूझता है । शतपथ की ११ वीं कण्डिका में राजा जनक सभी पुरोहितों का मुंह बंद कर देते हैं, और तो और ब्राह्मणों को जनक के प्रश्न समझ में ही नहीं आते ? एक एक और प्रसंग में श्वेतकेतु, सोमशुष्म और याज्ञवल्क्य सरीखे माने हुए ब्राह्मणों से प्रश्न करते हैं कि अग्निहोत्र करने का सच्चा तरीका क्या है,
और किसी से इसका सन्तोषजनक उत्तर नहीं बन पाता। यज्ञ की दक्षिणा अर्थात् १०० गाएं, याज्ञवल्क्य के हाथ लगती हैं, किन्तु जनक साफ-साफ कहे जाता है कि अग्निहोत्री की भावना अभी स्वयं याज्ञवल्क्य को स्पष्ट नहीं हुई और सूत्र के अनन्तर जब महाराज अन्दर चले जाते हैं, तो ब्राह्मणों में कानाफूसी चल पड़ती है 'यह क्षत्रिय होकर हमारी ऐसी की तैसी कर १. बृहदारण्यकोपनिषद्, २२११५ । २. विष्णुपुराण, ४१५॥३४ : प्रायेणैते आत्मविद्याश्रयिणो भूपाला भवन्ति ।
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