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कर्मवाद और लेश्या
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गुद्धि,
नील' ईर्ष्या, कदाग्रह, अतपस्विता, अविद्या, माया, निर्लज्जता, प्रद्वेष, शठता, प्रमाद, रसलोलुपता, सुख की गवेषणा, हिंसा में रत रहना, प्रकृति की क्षुद्रता और बिना विचारे काम करना । कापोत-वाणी की वक्रता, आचरण की वक्रता, कपट, अपने दोषों को छुपाना, मिथ्यादृष्टि, मखोल करना, दुष्ट वचन बोलना, चोरी करना और मात्सर्य ।
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तेजस्'
नम्र व्यवहार करना, अचपल होना, ऋजुता, कुतूहल न करना, विनय में निपुण होना, जितेन्द्रियता, मानसिक समाधि, तपस्विता, धार्मिक प्रेम, धार्मिक दृढ़ता, पापभीरुता और मुक्ति की गवेषणा ।
पद्म - क्रोध, मान, माया और लोभ की अल्पता, चित्त की प्रशान्ति, आत्म-नियंत्रण, समाधि, अल्पभाषिता और जितेन्द्रियता ।
शुक्ल -- धर्म और शुक्लध्यान की लीनता, चित्त की प्रशान्ति, आत्मनियंत्रण, सम्यक् प्रवृत्ति, मन, वचन और काया का संयम तथा जितेन्द्रियता ।
इस प्रसंग में गोम्मटसार जीवकाण्ड ( गाथा ५०८ - ५१६) द्रष्टव्य है । लेश्याओं के लक्षणों के साथ सत्त्व, रजस् और तमस् के लक्षणों की आंशिक तुलना होती है । शौच, आस्तिक्य, शुक्ल-धर्म की रुचि वाली बुद्धिये सत्त्वगुण के लक्षण हैं; बहुत बोलना, मान, क्रोध, दम्भ और मात्सर्यये रजोगुण के लक्षण हैं और भय, अज्ञान, निद्रा, आलस्य और विषाद - ये तमोगुण के लक्षण हैं ।
१. उत्तराध्ययन, ३४।२३-२४ २. वही, ३४१२५-२६॥
३. वही, ३४।२७-२८ ।
४. वही, ३४।२६-३० ।
५. वही, ३४।३२ ।
६. अष्टांगहृदय, शरीरस्थान, ३।३७,३८ : सात्विकं शौचमास्तिक्यं शुक्लधर्म रुचिर्मतिः । राजसं बहुभाषित्वं मानक्रुद्दम्भमत्सरम् ॥ तामसं भयमज्ञानं, निद्रालस्यविषादिता । इति भूतमयो देह
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