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संस्कृति के दो प्रवाह
वरुण, सोम, रुद्र, मेघ, यम, मृत्यु और ईशान आदि हैं, उन्हें उत्पन्न किया। अतः क्षत्रिय से उत्कृष्ट कोई नहीं है। उसी से राजसूय यज्ञ में ब्राह्मण नीचे बैठकर क्षत्रिय की उपासनः करता है। वह क्षत्रिय में ही अपने यश को स्थापित करता है।" मात्मविद्या के लिए ब्राह्मणों द्वारा अत्रियों की उपासना
क्षत्रियों की श्रेष्ठता उनकी रक्षात्मक शक्ति के कारण नहीं, किन्तु आत्मविद्या की उपलब्धि के कारण थी। यह आश्चर्यपूर्ण नहीं, किन्तु बहुत यथार्थ बात है कि ब्राह्मणों को आत्मविद्या क्षत्रियों से प्राप्त हुई है।
आरुणि का पुत्र श्वेतकेतु पंचालदेशीय लोगों की सभा में आया। प्रवाहण ने कहा-कुमार ! क्या पिता ने तुम्हें शिक्षा दी है ? श्वेतकेतु-हां भगवन् !
प्रवाहण-क्या तुझे मालूम है कि इस लोक से (जाने पर) प्रजा कहां जाती है ? __ श्वेतकेतु-नहीं, भगवन् !
प्रवाहण--क्या तू जानता है कि वह फिर इस लोक में कैसे आती है ?
श्वेतकेतु-नहीं भगवन् ! प्रवाहण-देवयान और पितृयान -इन दोनों मार्गों का एक दूसरे से
विलग होने का स्थान तुझे मालूम है ? श्वेतकेतु-नहीं, भगवन् ! प्रवाहण-तुझे मालूम है, यह पितृलोक मरता क्यों नहीं है ? श्वेतकेतु-भगवन् ! नहीं।
प्रवाहण-क्या तू जानता है कि पांचवीं आहुति के हवन कर दिए जाने पर आप (सौम, घृतादि रस) पुरुष संज्ञा को कैसे प्राप्त होते हैं ?
श्वेतकेतु-नहीं, भगवन् ! नहीं।
तो फिर तू अपने को 'मुझे शिक्षा दी गई है ऐसा क्यों बोलता था ? जो इन बातों को नहीं जानता, वह अपने को शिक्षित कैसे कह सकता है ?
तब वह त्रस्त होकर अपने पिता के स्थान पर आया और उससे बोला-"श्रीमान् ने मुझे शिक्षा दिए बिना ही कह दिया कि मैंने तुम्हें शिक्षा दे दी है। उस क्षत्रिय बन्धु ने मुझ से पांच प्रश्न पूछे थे, किन्तु मैं उनमें से एक का भी विवेचन नहीं कर सका।'
१. बृहदारण्यक, १।४।११, पृ० २८६ ।
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