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संस्कृति के दो प्रवाह 'जब मैं अपने द्वारा किए गए कर्मों से छेदा जाता हूं तब माता-पिता, पुत्र, बन्धु, भाई, पत्नी और पुत्र-ये सभी मेरी रक्षा करने में समर्थ नहीं होते।"
_समाज व्यक्ति के लिए त्राण होता है किन्तु वह व्यक्ति से अभिन्न नहीं होता इसलिए वह उसे अन्त तक त्राण नहीं दे सकता। धर्म व्यक्ति से अभिन्न होता है, इसलिए वह उसकी अन्तिम त्राण-शक्ति है। इसी संदर्भ में कमलावती ने महाराज इषुकार से कहा था
'यदि समूचा जगत् तुम्हें मिल जाए अथवा समूचा धन तुम्हारा हो जाए तो वह भी तुम्हारी इच्छा-पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं होगा और वह तुम्हें त्राण भी नहीं दे सकेगा।'
'राजन् ! इन मनोरम काम-भोगों को छोड़ कर जब कभी मरना होगा । हे नरदेव ! एक धर्म ही त्राण है। उसके सिवाय दूसरी कोई वस्तु त्राण नहीं दे सकती।"
अनाथी को किसी भी सामाजिक साधन से त्राण नहीं मिला, तब उन्होंने संकल्प किया
'इस विपुल वेदना से यदि मैं एक बार ही मुक्त हो जाऊं तो क्षमावान, दान्त और आरम्भ का त्याग कर अनगार-वृत्ति को स्वीकार कर लूं।"
- इस संकल्प में वे अपने से अभिन्न हो गए। उनकी वेदना रात-रात में समाप्त हो गई। एकत्व और अत्राणात्मक दृष्टिकोण
____धर्म्य-ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं-एकत्व, अनित्व, अशरण और संसार-के चिन्तन से व्यक्ति का धर्म की ओर झुकाव होता है। एकत्व
और अत्राणात्मक (या अशरणात्मक) दृष्टिकोण का निरूपण इसी शीर्षक में आ चुका है। उन्हें पृथक् किया जाए तो वे धर्म की धारणा के दो स्वतंत्र हेतु-पांचवां और छठा-बन जाते हैं। अनित्यवादी दृष्टिकोण
धर्म की धारणा का सातवां हेतु रहा है-अनित्यवादी दृष्टिकोण । जिन्हें यह अनुभव हुआ कि जीवन नश्वर है, उन्होंने अनश्वर की प्राप्ति के १. उत्तराध्ययन, ६।३ ।
३. वही, २०१३२। २. वही, १४१३६,४० ।
४. वही, २०१३३।
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