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संस्कृति के दो प्रवाह _ 'यह ठीक है कि तीन गुप्तियों से गुप्त मुनियों को विभूषित देवियां भी विचलित नहीं कर सकतीं, फिर भी भगवान् ने एकान्तहित की दृष्टि से उनके लिए विविक्तवास को प्रशस्त कहा है।
'मोक्ष चाहने वाला संसार-भीरु एवं धर्म में स्थित मनुष्य के लिए लोक में और कोई ऐसा दुस्तर नहीं है, जैसी दुस्तर अज्ञानियों के मन को हरने वाली स्त्रियां हैं। - 'जो मनुष्य इन स्त्री-विषयक आसक्तियों का पार पा जाता है, उनके लिए शेष सारी आसक्तियां वैसे ही सुतर (सुख से पार करने योग्य) हो जाती हैं, जैसे महासागर का पार पा जाने वाले के लिए गंगा जैसी बड़ी नदी।"
'ब्रह्मचर्य के दस नियमों का पालन करो।"
इस प्रकार और भी अनेक नियम हैं जो निमित्तों से बचने के लिए बनाए गए थे । समग्र दृष्टि से देखा जाए तो अनगार दीक्षा और क्या है ? वह निमित्तों से बचने की प्रक्रिया ही तो है।
___इस प्रकार अगार और अनगार जीवन का श्रेणी-विभाग बहुत ही मनोवैज्ञानिक है। अगार-जीवन में साधना के विघ्नभूत निमित्तों से बचने में जो कठिनाई होती है, उसका पार पा जाना ही अनगार-जीवन है। पहली भूमिका में बाह्य विषयों का त्याग उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता है
और अग्रिम भूमिकाओं में वह सहज स्वभाव हो जाता है। कृत-त्याग में स्खलनाएं हो सकती हैं किन्तु सहज स्वभाव में कोई स्खलना नहीं होती। हम इस बात को सदा याद रखें कि हमारा पहला चरण ही अन्तिम लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाता।
१. उत्तराध्ययन, ३२।१३-१८ । २. उत्तराध्ययन का १६ वां अध्ययन ।
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