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प्रमण और वैदिक परम्परा की पृष्ठभूमि
यह बहुत आश्चर्य की बात है कि महात्मा बुद्ध परलोकवादी होते हुए भी अनात्मवादी थे। बौद्धों के अनुसार आत्मा प्रज्ञप्तिमात्र है। जिस प्रकार रथ' नाम का कोई स्वतंत्र पदार्थ नहीं है, वह शब्दमात्र है, परमार्थ में अंग-संभार है, उसी प्रकार आत्मा, जीव, सत्त्व, नाम रूपमात्र (स्कन्धपंचक) है। यह कोई अविपरिणामी शाश्वत पदार्थ नहीं है । बौद्ध अनीश्वर वादी और अनात्मवादी हैं । वे सर्वास्तिवादी, सस्वभाववादी, तथा बहुधर्मवादी हैं, किन्तु वे कोई शाश्वत पदार्थ नहीं मानते। उनकी मान्यता में द्रव्य सत् हैं, किन्तु क्षणिक हैं।'
महात्मा बुद्ध ने कहा था
"भिक्षुओ ! यदि कोई कहे कि मैं तब तक भगवान् (बुद्ध) के उपदेश के अनुसार नही चलूंगा, जब तक कि भगवान् मुझे यह न बता देंगे कि संसार शाश्वत है वा आशाश्वत; संसार सान्त है वा अनन्त; जीव वही है जो शरीर में है वा जीव दूसरा है, शरीर दूसरा है; मृत्यु के बाद तयागत रहते हैं वा मृत्यु के बाद तथागत नहीं रहते-तो भिक्षुओ, यह बातें तो तथागत के द्वारा बे-कही ही रहेंगी और वह मनुष्य यों ही मर जाएगा।
___भिक्षुओ, जैसे किसी आदमी के जहर में बुझा हुआ तीर लगा हो। उसके मित्र, रिस्तेदार उसे तीर निकालने वाले वैद्य के पास ले जावें। लेकिन वह कहे-'मैं तब तक यह तीर नहीं निकलवाऊंगा, जब तक यह न जान लं कि जिस आदमी ने मुझे यह तीर मारा है वह क्षत्रिय है, ब्राह्मण है, वैश्य है या शूद्र हैं'; अथवा वह कहे-'मैं तब तक यह तीर नहीं निकलवाऊंगा, जब तक यह न जान लं कि जिस आदमी ने मुझे यह तीर मारा है, उसका अमुक नाम है, अमुक गोत्र है'; अथवा वह कहे-'मैं तब तक यह तीर नहीं निकलवाऊंगा, जब तक यह न जान लं कि जिस आदमी ने मुझे यह तीर मारा है, वह लम्बा है, छोटा है, वा मझले कद का है'; तो हे भिक्षुओ, उस आदमी को इन बातों का पता लगेगा ही नहीं, और वह यों ही मर जाएगा।
'भिक्षुओ, 'संसार शाश्वत है'-ऐसा मत रहने पर भी, 'संसार अशाश्वत है'-ऐसा मत रहने पर भी, 'संसार सान्त है'-ऐसा मत रहने पर भी, संसार अनन्त है'-ऐसा मत रहने पर भी 'जीव वही है जो शरीर है'-ऐसा मत रहने पर भी, 'जीव दूसरा है, शरीर दूसरा है'-ऐसा मत
१. बौद्ध धर्म-दर्शन, पृ० ५१३ ।
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