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श्रमण और वैदिक परम्परा की पृष्ठभूमि ब्रह्मचारी स्वर्ग में गए। दम जीवों के लिए दुर्धर्ष-अपराजेय है । दम में सर्व प्रतिष्ठित हैं, इसलिए कुछ ऋषि दम को परम मोक्ष-साधन बतलाते
- (४) शान्त पुरुष शम के द्वारा शिव (मंगल पुरुषार्थ) का आचरण करते हैं। नारद आदि मुनि शम के द्वारा स्वर्ग में गए। शम जीवों के लिए दुर्धर्ष है। शम में सर्व प्रतिष्ठित हैं, इसलिए कुछ ऋषि शम को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं।
(५) दान (गौ हिरण्य आदि का दान) यज्ञ की दक्षिणा होने के कारण श्रेष्ठ है। लोक में भी सब आदमी दाता के उपजीवी होते हैं। धनदान से योद्धा शत्रुओं को परास्त करते हैं। द्वेष करने वाले भी दान से मित्र बन जाते हैं । दान में सर्व प्रतिष्ठित हैं, इसलिए कुछ ऋषि दान को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं।
(६) धर्म (तालाब, प्याऊ आदि बनाने रूप) सर्व प्राणीजात की प्रतिष्ठा (आधार) है। लोक में भी धर्मिष्ठ पुरुष के पास जनता जाती है-धर्म. अधर्म का निर्णय लेती है। धर्म से पाप का विनाश होता है। धर्म में सर्व प्रतिष्ठित हैं, इसलिए कुछ ऋषि धर्म को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं।
(७) प्रजनन (पुत्रोत्पादन) ही गृहस्थ की प्रतिष्ठा है। लोक में पुत्र रूपी धागे को विस्तृत बनाने वाला अपना पितृ-ऋण चुका पाता है। पुत्रोत्पादन ही उऋण होने का प्रमुख साधन है। इसलिए कुछ ऋषि प्रजनन को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं। ..
(८) अग्नित्रय' ही त्रयी-विद्या (वेद-त्रयी) है। वही देवत्व प्राप्ति का मार्ग है। गार्हपत्य नामक अग्नि ऋग्वेदात्मक है। वह पृथ्वी-लोक स्वरूप और रथन्तर सामरूप है । दक्षिणाग्नि से आहार का पाक होता है। वह यजुर्वेदात्मक, अन्तरिक्ष-लोक रूप और वामदेव्य सामरूप है। आह्वनीय अग्नि सामवेदात्मक स्वर्गलोक रूप और बृहत् सामरूप है, इसलिए कुछ ऋषि अग्नि को परम मोक्ष-साधन बतलाते हैं।
१. वैदिक कोश, पृ० १२६ :
वैदिक-यज्ञ के प्रमुख तीन अग्नियों में एक गार्हपत्य है । अथर्ववेद (६।६।३०) के अनुसार “योऽतिथीनां स आहवनीयो, यो वेश्मनि स गार्हपत्य यस्मिन् पचति स दक्षिणाग्नि”...अर्थात् अतिथियों के लिए प्रयुक्त अग्नि आहवनीय, गृह-यज्ञों में प्रयुक्त गार्ह पत्य और पकाने की अग्नि दक्षिणाग्नि है ।
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