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श्रमण परम्परा की एकसूत्रता और उसके हेतु
आरे की नोक पर न टिकने वाले सरसों के दाने की तरह जिसके राग, द्वेष, अभिमान आदि छूट गए हैं, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
जो अकर्कश, ज्ञानकारी-सत्य बात बोलता है, जिससे किसी को चोट नहीं पहुंचती, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
जो संसार में लम्बी या छोटी, पतली या मोटी, अच्छी या बुरी किसी चीज की चोरी नहीं करता, उसे मैं ब्राह्मण कहता हैं।
जिसे इस लोक या परलोक के विषय में कृष्णा नहीं रहती, जो तृष्णा-रहित, आसक्ति-रहित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
जो आसक्ति-रहित है, ज्ञान के कारण संशय-रहित हो गया है और अमृत (निर्वाण) को प्राप्त है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
. जो दोनों-पुण्य और पाप की आसक्तियों से परे है, शोक-रहित, रज-रहित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
_ जो इस संकटमय, दुर्गम संसार रूपी मोह से परे हो गया है, जो उसे तैर कर पार कर गया है, जो ध्यानी है, पाप-रहित है, संशय-रहित है, तृष्णा-रहित हो शान्त हो गया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
. जो विषयों को त्याग बेघर हो प्रवृजित हुआ है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
जो तृष्णा को त्याग बेघर हो प्रवजित हुआ है, जो तृष्णा-क्षीण है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
जो रति और अरति को त्याग, शान्त और बन्धन-रहित हो गया है, जो सारे संसार का विजेता और वीर है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
जिसने सर्व प्रकार से प्राणियों की मृत्यु और जन्म को जान लिया है, जो अनासक्त है, सुगत है और बुद्ध है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
जिसकी गति को देवता, गन्धर्व और मनुष्य नहीं जानते, जो वासना-क्षीण और अर्हन्त है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
जिसको भूत, वर्तमान या भविष्य में किसी प्रकार की आसक्ति नहीं रहती, जो परिग्रह और आसक्ति-रहित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
'जो श्रेष्ठ, उत्तम, वीर, महर्षि, विजेता, स्थिर, स्नातक और बुद्ध है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
"जिसने पूर्व जन्म के विषय में जान लिया है, जो स्वर्ग और नरक दोनों को देखता है और जो जन्म-क्षय को प्राप्त है, उसे मैं ब्राह्मण कहता
__ संसार के नाम-गोत्र कल्पित हैं और व्यवहार मात्र हैं। एक-एक के
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