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माथान।
[१३ इनमें अश्मक रम्यक, करहाट, महाराष्ट्र, आमीर, कोंकण, वनवास, मांध्र, कर्णाट, चोल, केरल आदि देश दक्षिण भारतमें मिलते हैं। इससे स्पष्ट है कि भ० ऋषभदेव द्वारा इन देशोंका मस्तित्व और संस्कार हुमा था । अतः दक्षिण भारतमें जैन धर्मका इतिहास उस ही समय अर्थात् कर्मममिकी आदिसे ही प्रारंभ होता है। इस अपेक्षा हमें उसे दो भागोंमें विभक्त करना उचित प्रतीत होता है; अर्थात्:(१) पौराणिक काल:-इस अन्तरालमें भगवान ऋषभ
देवसे २१ वें तीर्थकर भ. नमिनाथ तकका संक्षिप्त
इतिहास समाविष्ट होजाता है। (२) ऐतिहासिक काल:-इस अन्तराळमें उपरान्तके
तीर्थङ्करों और भाजतक हुये महापुरुषोंका इतिहास गर्भित होता है। यह अन्तराल निम्न प्रकार तीन भागोंमें बांटना उपयुक्त है। अर्थात्:(१) प्राचीनकाल (ई० पूर्व ५००० से ई० पूर्व १) (२) मध्यकाल ( सन् १ से १३०० ई० )
(३) अर्वाचीनकाल ( उपरान्त ) भागेके पृष्टोंमें इसी उपर्युक्त क्रमसे दक्षिण भारतके जैन इतिहासका वर्णन करनेका उद्योग किया गया है। पहले ही 'पौराणिक काल' का विवरण पाठकोंके समक्ष उपस्थित किया जाता है।
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