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भगवान् अरिष्टनेमि, कृष्ण और पाण्डव। [७९ ___अर्जुनका व्याह काम्पिल्य नगरके राजा द्रुपदकी राजकुमारी द्रौपदीसे पहले ही होचुका था ! आखिर पांडव दक्षिण मथुरा बसा कर वहीं राज्य करने लगे थे। आज भी पांडवोंके स्मारकरूपमें दक्षिण भारतमें 'पांडव मलय' आदि स्थान मिलते हैं।' एक दफा जब भगवान अरिष्टनेमि गिरनार पर्वतपर विराज
मान थे, श्रीकृष्ण सपरिवार उनकी वन्दना द्वारिकाका नाश। करने गये। वन्दना करके उन्होंने तीर्थकर
भगवानसे पूछा कि द्वारिकाका भविष्य क्या है ! भगवानने उत्तरमें बताया कि द्वारिकाका नाश द्वीपायन मुनिके निमित्तसे होगा। उद्धत यादव युवक मदमत्त हो द्वीपायन मुनिको छेड़ेंगे और उनकी कोपानिमें सारे यादवों सहित द्वारिका भस्म होजायगी-केवल कृष्ण और बलराम शेष रहेंगे। वे दोनों निराश होकर दक्षिण मथुराकी ओर पांडवों के पास जायगे कि रास्तेमें कौशांबवनके मध्य जरत्कुमारके बाणसे कृष्णका स्वर्गवास होगा।
तीर्थकरके मुख से यह भविष्यवाणी सुनकर यादवगण भयभीत होगये और उन्होंने द्वारिकाकी रक्षाके लिये सतत् उपाय किये । परन्तु भावी अमिट थी। द्वारिकाका नाश द्वीपाइनकी क्रोधागिसे
१-हरि० सग ४५ व ५४ । २-ममे स्मा०, पृ० ६१.... ।
२-ततेण अहा मरिनेमी दण्ड वासुदेवं एवं पयासी-एवं खलु कण्ह ! तुम मारवतिए णयरीए सुरिग्मी दीवायणे को विनिहाए सम्मापियरो णि ग्गवि पहुणे रामेण बलदेवेण सद्धि दाहिणे वेयोलियभिमुहे जुडेहल पामोक्खाणं पंचाहं पंडवाणं पंडूराय पुत्ताणं पास
डनहुरं सपत्यिते कोसंत्र काणणेणं नगोहवर पायस्स अहे पुढविसिलापट्टर वियएक छाइय सरीरे....इत्यादि ।
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