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संतिम जैन इतिहास। राजाने उनके पास दुत भेजा, परन्तु उन्होंने करकंडुका आधिपत्य स्वीकार नहीं किया। इस उत्तरको सुनकर करकंडु चिढ़ गया।
और उसने उनपर तुरन्त चढ़ाई कर दी। मार्गमें वह तेरापुर नगर पहुंचे। और वहांके राजा शिवने उनका सम्मान किया। वहीं निकटमें एक पहाड़ी और गुफायें थीं। करकंडु शिवराजाके साथ उन्हें देखने गया । गुफामें उन्होंने भगवान पार्श्वनाथका दर्शन किया । वहीं एक वामीको उन्होंने खुदवाया और उसमेसे जो भगवान पार्श्वनाथकी एक मूर्ति निकली, उसको उन्होंने उस गुफामें बिराजमान किया । मूर्ति जिस सिंहासन पर विराजमान थी उसके बीचमें एक भद्दी गाँठ दिखती थी। करकंड्डने उसे तुड़वा दिया, किन्तु उसके तुड़वाते ही वहाँ भयंकर जलप्रवाह निकल पड़ा । करकंडु यह देखकर पछताने लगे। उस समय एक विद्याधरने माकर उनकी सहायता की और उसने उस गुफाके बननेका इतिहास भी उनको बताया।
विद्याधरके कथनसे करकंडुको मालूम हुआ कि दक्षिण विजयाईके स्थनपुर नगरसे राजच्युत होकर नील महानील नामके दो भाई तेरपुरमें भारहे थे। यह दोनों विद्याधर वंशके राजा थे। धीरे धीरे उन्होंने वहाँ राज्य स्थापित कर लिया। एक मुनिके उपदेशसे उन्होंने जैन धर्म ग्रहण कर लिया और वह गुफा मंदिर बनवाया। उस गुफा मंदिरमें एक मूर्ति ठेठ दक्षिणभारतसे आई हुई उस विद्याधरने बताई।
रावणके वंशजोंने मलयदेशके पुदी पर्वतपर एक जिनमंदिर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com