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संक्षिप्त जैन इतिहास |
चोल राज्य ।
चोल प्रदेशका नाम चोलमण्डल था, जिसका अपभ्रंश कोरोमण्डल होगया। उसके उत्तर में पेन्नार और दक्षिण में वेल्लारु नदी थी । पश्चिममें यह राज्य कुर्गकी सीमा तक पहुंचता था । अर्थात् इस राज्य में मदरास, मैसूरका बहुतसा इलाका और पूर्वीसागर तट - पर स्थित बहुत से अन्य ब्रिटिश जिले मिले हुए थे । प्राचीनकाल में इस राज्य की राजधानी उईंऊर ( पुरानी तृचनापली ) थी । और तब इसका पश्चिम के साथ बहुत विस्तृत व्यापार था। तामिल लोगोंके जहाज भारतमहासागर तथा बङ्गालकी खाड़ीमें दूर-दूर तक जाते थे ।
कावेरीप्पुमपट्टनम् इस देशका बड़ा बंदरगाह था। चोलराजाओंमें प्रमुख कारिकल नामका राजा था जिसने लंकापर आक्रमण किया था और कावेरीका बांध बांधा था। इस राजाकी नाम अपेक्षा एक जिनालय भी स्थापित किया गया था, जिससे इस राजाका जैनधर्मप्रेमी होना सष्ठ है।
पाण्ड्य और चोल
राज्योंके समान ही चेर अथवा केरल राज्य था । चेर राजाओंके इतिहास में विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि उनके
चेर राज्य ।
राज्यकाल में देहांतका शासन अधिकांश प्रजातन्त्र नियमोंपर चलाया जाता था, जिसका प्रभाव सारे राज्यपर पड़ा हुआ था | गांवों में भिन्न भिन्न सभायें प्रबन्ध और
१ -लाभाइ० पृष्ठ २९१-२९२ । २- साइंजै०, भा० २ पृष्ठ ३८ ।
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