Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 167
________________ १५०] संक्षिप्त जैन इतिहास । महागजन उसकी यह प्रार्थना स्वीकार की और तत्वाधिगम सूत्र' को रच दिया। · सिद्धय्य ' के निमित्तसे इस ग्रंथानके रचे जाने का लव संभवतः सर्वार्थसिदि' टीक में भी है।' निस्सग्देह सिद्धय्यक निमित्तमे रचा हुका यह प्रयाज जैनसिद्धांतकी भमुल्य निधि है। यही कारण है कि उपरान्त जैनाचार्यों ने म.. उमास्वातिका माण बड़े ही सम्माननीय रौतिस किया और उन्हें 'श्रुतवाल देशीय ' एवं गुणगंभीर' भी लिखा।' श्रुतसागरजीने धनका श्रुतिमधुर नाम उमास्वामी रख दिया और तबसे दिगम्बरोंमें सीका प्रचार होगया; परन्तु प्राचीन दिगम्बर जैन ग्रंथोमें उनका माम उमास्वाति मिलता है। म० उमास्वाति संभवतः श्री कुन्दक म्दाचार्य के प्रशिष्य थे। इसलिये एवं उनकी सैद्धांतिक विवेचनाशैकीसे, जिसका साम्य 'योगसूत्र' मादिसे है, स्पष्ट है कि वह ईस्वी पहली शतानि विद्व न थे। ... समयानुकूल भ० उमास्वाति के पश्चात उल्लेखनीय भाचार्य यो समंतभद्रस्वामी हैं। दिगम्बर विद्वानों समतभद्रस्वामा । भी समन्तभद्र- लिये वह स्तवनार्य और प्रमाणभूत है। स्वामी। परन्तु 'श्वेताम्बर विद नोंने भी उनकी प्रमाणिस्ताको खुके दिलसे स्वीकार १-अनेकांत, वर्ष १ पृ० १९७ । २-तत्वार्थसत्रकामुमास्वातिमुनीश्वरं । श्रुतकेवलिदेशीयं वन्देऽहं गुणमरिरम् ॥ अनेकान्त पृ० ३९५ ३-भनेकान्त, पृ० २६९ । ४-पूर्व० पृष्ठ ३८९-३९२ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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