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दक्षिण भारतका जन-संघ । r
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वह इस समय तत्व र्थाधिगम सूत्र के अतिरिक्त जम्बूद्वीप समास प्रकरण, भावक प्रज्ञप्ति, क्षेत्रविचार, प्रशमरति और पूजा प्रकरण' नामक ग्रंथोंको उनकी रचना बताते हैं, परन्तु विद्वज्जन केवळ 'प्रशम अति' को म० उमास्वाति की रचना होना शक्य समझते हैं। इसमें शक नहीं कि म० उमास्वाति अपने समय के अद्वितीय विद्वान थे । उन्होंने जैन आगम में प्रसिद्ध सैद्धांतिक एवं खगोल भूगोल आदि सब ही विषयोंका संक्षिप्त संग्रह अपने ' तत्कार्थाधिगम सूत्र में कर • दिया है, यही कारण है कि उनका यह ग्रन्थराज आज " जैन बाइबिल " के नाम से प्रसिद्ध है। शायद संस्कृत भाषा में जैनों की बड़ी सबसे पहली उल्लेखनीय रचना है। इसकी उत्पत्तिके विषयमें कहा जाता है कि सौराष्ट्र के गिरिनगर (जुनागढ़) नामक स्थान में मासक गव्य द्वित्र कुलोत्पन्न, शेतांवरभक्त एक ' विद्धय्य' नामका विद्वन आवक रहता था । उसने ' दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ' बह एक सूत्र रचा और उसे पाटियेपर लिख छोड़ा। एक समय चर्या - श्री गृद्ध पच्छाचार्य उमास्वाति नाम धारक आचार्य वहां जाये । उन्होंने वह सूत्र देखकर उसमें 'सम्यकू' शब्द जोड़ दिया । 'सिद्ध'
जब यह देखा तो वह उन आचार्यके पीछे भागा और उन्हें ड कर उनसे उस 'मोक्षशास्त्र' को रचनेके लिये प्रार्थी हुआ । आचार्य
"कवदन्तो भूतबलि जिनचंद्रो मुनिः पुनः । कुंदकुंद मुनीन्द्रोमा स्वातिवाचकसंजितौ ॥”
१- जमेकान्त, वर्ष १ पृ० २-' तत्वर ब्रदीपिका "
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( अनेकान्त पृ० ४०६ फुटनोट ) ३९४ ।
- अनेकान्त वर्ष १ ० २०० १
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