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११०] ... संतिम जैन तिहास। नहीं है । परन्तु साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि श्री महलि भाचार्य द्वारा उपयुक्त प्रकार उपसंघ स्थापना होनेपर निग्रंथ संघ उपरान्त संभवतः उन माचार्यश्री नाम अपेक्षा 'बलात्कार-- गण' के नामसे प्रसिद्ध हुआ था। कहा जाता है कि इसी समय गिरिनार पर्वत पर तीथकी वंदना पहले या पीछे करनेके पनको
कर दिगम्बर और श्वेताम्बरोंमें बाद उपस्थित हुआ था। दिगबरोंने वहां पर स्थित सरस्वती देवी की मूर्तिके मुखसे करूया कर अपनी प्राचीनता और महत्ता स्थापित की थी। इसी कारण उनका संघ मूलसंघ सरस्वती गच्छ के नामसे प्रसिद्ध होगया मा।' इसके बाद मूल संघमें श्री कुंदकुंद नामके एक महान् भाचार्य
१-१०, भा. २० पृ० ३४२।
दिगम्बरामायकी इन मान्यताओंका नाधार केवळ मध्यकालीन 'पट्टालियां हैं। इसी कारण इन मान्यतामोंको पूर्णतया प्रमाणिक मानना कठिन है। परन्तु साथ ही यह भी एक पति माहसका काम होगा, पदि हम इनको सर्वथा अविश्वसनीय कहाँ, क्योंकि इनमें जो प्राकृत गाथायें दी गई है वह इनकी मान्यताओं की प्राचीन पुष्ट करती हैं। यही कारण है कि हॉन सा ने भी इन पहालियोंको सर्वथा अस्वीकृत नहीं किया था। यदि थोड़ी देर के लिए हम इन पट्टायलियोकी मान्यतामोंको कपोकपाल्पत बोषित करदें, तो फिर वह कौनसे प्रमाण और सावन होंगे जिनके माधारसे हम 'मसंघ, सरस्वतीगन, बलात्कारगण, कुन्दकुन्दान्वय' मादि सम्बन्धी विवरण उपस्थित कर सकेंगे ! इसलिये हमारे विचारसे इन पहावाव्योंको हमें उस समय तक अवश्य मान्य करना चाहिये जबतक कि उनका वर्णन अन्य
कार बन्यथा सिद्ध न होजाय । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com