Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 162
________________ दक्षिण भारतका चैन संघों [१५ तार भगवान का स्मरण करके सिद्ध परमात्मा स्मरण करते है और उन्हें पटगुणोंसेपभिभूत परमब्रम (बेन्ग-नापन् । बताते है। जैन यो परमब्रम सिद्ध परमात्माको निमलिखित मागुणोंसे पुरु बनवाया गया :-() डायिक सम्पत्य, (२) अनंतदर्श (1) अगन्तवान, (५.) अनन्तवीर्य, (५) सहमता, (६) बगाइवसा, (७) हलपुत्व (4) Marara मात्र परमात्मा हमाठ मुमबासी मि। ५) तीसरे परिच्छेदमें संसारत्यागी पुरुषों की महिमाका वर्णन है। उसमें उनको सर्वस्वका त्यागी और पांचों इन्द्रियोको पाये रखकर नासिक जीवन व्यतीत करनेवाला लिखा है। इन्द्रियलिय क्रमशः बन्द, सर्श, रूप, रस और गन्ध बताये हैं। साबी .साधु प्रकृति पुरुषोंहीको ब्रामण कहा है। जैनधर्ममें साधु सर्वस्वलागी, इन्द्रियनिरोपी तपस्वी हा गया है। इन्द्रियों की संख्या और उनके विषय मी जेन मान्यतानुसार हैं। खास बात यह है कि ऐसा साधु जैन इष्टिसे ए सचा ब्रामण है । "कुरल" में यही प्रगट किया गया है। (१) चौथे परिच्छेदमें धर्मका फल मोक्ष और धर्म अपने मनको पवित्र रखने में बताया है। उसमे भागामी जन्मों का मार्ग बन्द होजाता है। 'भावगहुड' में श्री कुन्दकुन्दाव र्यने इसी प्रकार मन शुद्धिका विषान किया है। जैन सिद्धांतमें पुण्य-पापका माप मनुष्यके भावोंसे ही किया जाता है। १-, मा१ ० १४ । २ श• मा० १ पृ.१७। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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