Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 161
________________ १४४ - Ji संक्षिप्त जैन इतिहास | एक जैनाचार्य की ही रचना प्रमाणित करते हैं: (१) कुकरों (परिच्छेद १) पहले ही मंगळस्तुति रूपमें '' वर्गका स्मरण करते हुये उसे शब्दलोकका मूत्र स्थान और मादिमको लोकोंको मूल स्रोत कहा है, जो जैन मान्यता के अनुकूल है। बैन शास्त्रों 'म' वर्ण हा शाब्दिक और सांकेतिक महत्व खूब ही प्रतिपादित किया गया है 'ज्ञानार्णव' में 'म' वर्णको ५०० बार अपना एक उपवास के तुल्य बताया है । ( बृजेश० मा० १ पृ० १-२ ) (२) पहले परिच्छेद में उपरान्त एक सर्वज्ञ परमेश्वर जिसने कमलों पर गमन किया (मकर्मिसइये गिनान) और जो भादि पुरुष है। तथा जो न किसीसे प्रेम करता है और न वृणा एवं जो जितेन्द्रिय है, उसकी वंदना करने का विधान है। जैन ग्रन्थोंमें आप्तके जो लक्षण बताये गये हैं उनमें उसे सर्वज्ञ - रागद्वेष रहित और वीतराग खास रीति से बताया गया है।' इस कल्पकालमें आदितीर्थङ्कर, आदिनाथ या ऋषभदेव मुख्य भाप्त हैं; इसी लिये शास्त्रोंमें उन्हें यादि पुरुष भी कहा गया है।' 'कुल' के रचयिता भी उन्हींका स्मरण करते हैं । वह सर्वज्ञ तीर्थकर रूपमें जब विहार करते थे तब देवेंद्र उनके पग तले कमलोंकी रचना करता जाता था । और वह उसपर गमन करते थे । यह विशेषता जैन तीर्थङ्कर की खास है । 'कुरल' के कर्त्ता उसका उल्लेख करके अपना मत स्पष्ट कर देते हैं । (३) आगे इसी परिच्छेदमें ' कुरल' के रचयिता अर्हन्त या १-Divinity in Jainism देखो । २ - जिनसहस्र नाम देखो। ३- मा० पर्व २२-२३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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