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११८] संक्षिप्त जैन इतिहास। पाण्ड्यराज्यमें उस समय धार्मिक सहिष्णुता भी प्रचुरमात्रामें
विद्यमान थी। 'मणिमेखले' नामक धर्म। तामिक महाकाव्यमें एक स्थल पर एक
नगरके वर्णनमें कहा गया है कि 'प्रत्येक धर्मालयका द्वार हर भक्त के लिये खुला रहना चाहिये । प्रत्येक धर्माचार्यको अपने सिद्धांतों का प्रचार और शास्त्रार्थ करने देना चाहिये। इस तरह नगरमें शांति और आनंद बढ़ने दीजिये।" यही बजह थी कि उस समय ब्राह्मण, जैन और बौद्ध तीनों धर्म प्रचलित होरहे थे। लोगोंमें जैन मान्यतायें खूब घर किये हुये थीं, यह बात 'मणिमेखले' और ' शीलप्पधिकारम् ' नामक महाकाव्योंके पढ़नेसे स्पष्ट होजाती है । 'मणिमेखले में ब्राह्मणोंकी यज्ञशालाओं, जैनोंकी महान पल्लियों (hermitages), शवोंके विश्रामों और बौद्धोंके संघारामोका साथ-साथ वर्णन मिलता है। यह भी इन काव्योंसे प्रगट है कि पाण्ड्य और चोल राजाओंने जैन और बौद्ध धर्मोको अपनाया थी। मधुरा जैन धर्मका मुख्य केन्द्र था ।
'मणिमेखलै' का मुख्य पात्र कोबलन अपनी पत्नी सहित १-जैसाई०, पृष्ठ २९ । २-बुस्ट०, पृष्ठ ३ ।
3-"It would appear that there was then perfoot religious toleration, Jainism advanoing so far as to be embraced by members of the royal family......The epics give one the improssion that there two (Jain & Buddhist) religions wore patronised by the Chola aswell 8a by the Pandym Kings."-साइजै० पृष्ठ ४६-४७ ।
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