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आन्ध्र - साम्राज्य ।
[ ११७ (सन् २९० ई०), बलवीर पाण्ठ्य (सन् ३१६ ई०) और जयवीर पाण्ड्य (सन् ३४३ ई०) ने राज्य किया था। इसके आगे इस पाण्ड्य वंशका पता नहीं चलता ।'
पाण्ड्यवंशकी एक दूसरी शाखा कारकलमें राज्याधिकारी थी । जिस समय तौलव देशका शासन
कारकलके पाण्ड्य । कापिट्टु हेग्गडे कर रहा था, उस समय प्रजा उसके दुःशासनके कारण ऊब गई थीं । भाग्यवशात् कारकलमे हुम्बुच्चके शासक जिनदत्तरायके वंशज भैरव पाण्ड्य मूडबिद्री तीर्थकी यात्रा करके आ निकले । दुखी प्रजाने उनसे जाकर अपनी दुख गाथा कही । भैरव पाण्ड्यने हेगडेको बुलाकर समझाया, परन्तु उसपर उनके समझानेका कुछ भी असर नहीं हुआ । हठात् उन्होंने हेगडेको युद्धमें परास्त करके उसके प्रदेशपर अधिकार जमाया। इनके उत्तराधिकारी कारकलमें आरहे और निम्नलिखित शासकोंने वहां रहकर राज्यशासन किया था ।
(१) पाण्ड्य देवरस या पाण्ड्य चक्रवर्ती, (२) लोकनाथ देवरस, (३) वीर पाण्ड्य देवरस, (४) रामनाथ भरस, (५) भैररस जोडेय, (६) वीर पाण्ड्य भैररस ओडेय, (७) अभिनव पाण्ड्यदेव, (८) हिरिय भैरवदेव ओडेब, (९) इम्मडि भैरवराय, (१०) पांडयप्प ओडेब, (११) इम्मडि भैग्वराब, (१२) रामनाथ और (१३) वीर
पाण्ड्य |
१ - जैसिभा० भा० ३ किरण ३ पृष्ठ ९२ । २- पूर्व० पृष्ठ ९३ ।
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