Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 149
________________ ११२] संक्षित जैन इतिहास। .. बाहुजीके साथ ही जैन धर्मका प्रवेश दक्षिण भारतमें हुमा; परन्तु जेन मान्यता के अनुसार दक्षिण भारतका जैन संघ उतना ही प्राचीन था, जितना कि उत्तर भारतका जैन संघ था। यही वजह थी कि उत्तरमें अकाल पड़ने पर धर्मरक्षाके भावसे भद्रबाहु स्वामी अपने संघको लेकर दक्षिण भारतको चले आये थे। उनका ही संघ ज्ञातरूपमें दक्षिणका पहला दिगम्बर जैन संघ प्रमाणित होता है। इसके पहले गौर कौन-कौन जेन संघ थे, इसका पता लगाना इस समय दुष्कर है। यह संघ मुनि, मार्यिका, श्रावक और श्राविकारूप चारों अकोंमें बंटा हुमा मुव्यवस्थित था। द्राविड़ लोगोंमें इसकी खूब ही मान्यता थी।' विद्वानोंका मत है कि द्राविड़ लोग प्रायः नागजातिके वंशज थे। जिस समय नागराजाभोंका शासनाधिकार दक्षिण भारतपर था, उस समय नागलोगोंके बहुतसे रीति-रिवाज और संस्कार द्राविड़ोंमें घर कर गये थे। नागपूजा उनमें बहु प्रचलित थी। जैन तीर्थंकरों में दो सुपाश्व और पार्थकी मूर्तियां नागमूर्तियोंका &-" The fact that the Jaina community had a perfect organisation behind it shows that it was not only popular but that it had taken deep root in the soil. The whole community, we learn from the opics, was divided into two sections, the Sravakas or laymen and the Munis or ascetics. The privilege of entering the monastery was not denied to women and both men and women took vows of celibacy." -13. P. 49. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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