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१३०] संक्षित जैन इतिहास । संघ था जो कई गणोंमें विषक्त था । इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यास गणवा उन गणों की सार-संभाल करते थे। किन्तु प्रश्न यह है कि इस पाचीन संघका बाह्य भेष और क्रियायें क्या थी ? खेद है कि इस पना पूर्ण और यथार्थ उत्तर देना एक प्रकारसे मसंभव है, क्योंकि ऐसे. कोई भी साधन उपलब्ध नहीं है जिनसे उस प्राचीन कालका प्रामाणिक मोर पूर्ण परिचय प्राप्त होसके। परन्तु तौमी स्वयं दिगम्बरे एवं श्वेताम्बर जैन शस्त्रों और ब्राह्मण एवं बौद्ध ग्रन्थों तथा भारतीय पुरातत्वे पे यह स्पष्ट है कि प्राचीन-भगवान
१-महापुराण, उत्तरपुगण, तथा मूळाचारादि ग्रन्थ देखिये।
२-'कल्पसूत्र' में लिखा है कि म०ऋषभदेव उपरान्त यथाबात-जनमेष में रहे थे और यही बात भ. महावीर के विषय में उस ग्रन्थमें लिखी हुई है।
३-'भागवत' में ऋषभदेवको दिगम्बर साधु लिखा है । (मम० पृष्ठ ३८) जावाल्लोपनिषद् आदि इतर उपनिषदोंमें 'यथाजातरूपधर निग्रन्थ' साधुओं का उल्लेख है । (दिमु.पृ०७८) ऋग्वेद (१०/१३६), वराहमिहिर संहिता (१९।६१) आदिमें भी जैन मुनियोंको नग्न लिखा है।
४-महावग्ग ८,१५,३।१,३८,१६, चुल्लवग्ग ८,२८,३, संयुत्तनिकाय २,३,१०,७. जातकमाला (S. B. B. I) पृ० १४, दिव्यावदान पृ० १६५, विशाखापत्थु-धम्म-पद-कथा (P. T. S., Vol. I) भा० २ पृ० ३८४ इत्यादि में जैन मुनियोंको नग्न लिखा है।
५-मोहनजोदरोके सर्व प्राचीन पुरातत्वमें श्री ऋषभदेव जैसी बैक चिन्हयुक्त खड्गासन नग्न मर्तियां मुद्राओंपर मंकित हैं (भारि० अगस्त १९३२) मौर्यकालको प्राचीन मर्ति मग्न ही है (सिमा० भा० ३ पृ. १७)।
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