Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 154
________________ दक्षिण भारतका जैन संघ । थे। उपरांत ईस्वी पहली दूसरी शताब्दि श्वेताश्वरीयपादविसा चार्य महखेड़तक पहुंचे थे; किन्तु यह नहीं कहा जासकता कि वह अपना मत फैलाने में कहांतक सफल हुये थे। ईस्वी पांचवीं शता ब्दिके एक ताम्रपत्रके लेखमें पहले पहले श्वेताम्बर जैन संपका बल मिलता है। परन्तु इसके बाद फिर उनका कोई नहीं मिलता। : श्री भद्रबाहु श्रुतकेवीके बहुप्रसिद्ध संघके उपरांत शास्त्रति हमें दक्षिण पथके उस दिगम्बर जैनसंघका पता चलता है, जो श्रीधरसेनाचार्यजीके समय में महिमा नगरीमें संमि लित हुआ था । यह नगरी वर्तमाव सतारा जिलेका ' महिमानगढ़ ' नामक गांव प्रगट होता है। इस संघने परामर्श करके म.प्रदेशस्थ वेण्यात नगर से दो सकळकळा पारगामी एवं तीक्ष्णबुद्धिके धारक मुनि पुंगयोको श्रीधरसेनाचार्यजीके निफ्ट श्रुत अध्ययन के लिये मेजा था । श्रीधरसेनाचार्य उस समय सौराष्ट्र के प्रसिद्ध नगर गिरिनगर के निकट चंद्रगुफा में बिराजमान थे। उपरोक्त दोनों शिष्यों के नाम उन्होंने क्रमशः भूतबलि और पुष्पदंत खखे थे और उन्होंने उनको 'महाकर्मप्रकृतिप्राभृत' नामक ग्रन्थ भी पढ़ा दिया था । उपरांत श्रीधरसेनाचार्यजीने उन दोनों बाबायको बिदा किया, जिन्होंने अंकलेश्वर (मरोंच जिला) में जाकर वर्षाकाळ व्यतीत किया । १- जेहि० भा० १४ पृ० २२४ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com श्रीधरसेनाचार्य और सुत-उद्धार । १२३० ין

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