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१३४] संक्षित जैन इतिहास । मुनियों भावासका पता चलता है। वे मुनिगण दिगम्बर मूर्तियोकी वंदना करते थे, यह बात उन गुफामोंमें मिली हुई प्रतिमाबोंसे रुष्ट है । तामिळ काव्योंसे प्रगट है कि तबके नैनी महत् भगवानकी भव्य मूर्तिकी पूजा किया करते थे। वह मूर्ति अक्सर तीन सत्रोंसे नी. अशोक वृक्षसे मंडिल पद्मासन हुआ करती थी। के जैनी दिगम्बर थे, यह उनके वर्णनसे स्पष्ट है तथा वे राज्यमान्य
“मणिमेखले " कामसे जैन सिद्धांत के उस समय प्रचलित
रूपका भी दिग्दर्शन होता है। उसमें जैन सिदांत। लिखा है कि “मनिमेखलाने निगंट
(निर्गन्ध) से पूछा कि तुम्हारे देव कौन हैं और तुम्हारे धर्मशास्त्रोंमे क्या लिखा है ! उसने यह भी पूछा कि लोक में पदार्टीकी उत्पत्ति और विनाश किस तरह होता है! उसमें निगट ने बताया कि उनके देव इन्द्रोद्वारा पूज्य है और उनके बताये हुये धर्मश स्त्रोंमें इन विषयों की विवेचन है। धर्म, भधर्म, काल, माकाश, जीव, शास्वत परमाणु, पुण्य, पाप, इनके दाग रचित कर्मबंध और इस कर्मबंधसे मुक्त होनेका मार्ग । पदार्थ अपने ही स्वमासे अथवा पर पदार्थों के संयोगवर्ती प्रभावानुसार भनिव मथवा नित्य हैं। एक अणमात्रके समय में उनकी तीनों दशा
१-ममेवाजस्मा., . १.७॥२-साइं०, मा० १ पृ. ४८ ।
"That these Jains were the Digamlaras is dearly seen from their description."-SIJ. P. 48
३-साईनै०, मा० १ पृ. ५०-५१।
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