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१२१] संक्षिप्त जैन इतिहास । गुरू जैनाचार्य थे; बल्कि पांचवी शताब्दि तक उस वंशके राजा गुरू जैनी ही रहे । चेर राजा कुमार इलङ्गको मादिगलके पितामह एक महावीर थे। एक युद्धमें उनकी पीठमें घातक भाषात पहुंचा। उन्होंने अपना अन्त समय निकट जानकर सल्लेखना व्रत स्वीकार किया था। - राजकुमार इकन्गोबर्द्ध भी जैन मुनि हुये थे। कोंगु. देश भनेक प्राचीन स्थान ऐसे हैं जिनसे प्राचीनकालये नैन धर्मका बहु प्रचार स्पष्ट होता है । विजियमङ्गलम् नामक स्थानपर चन्द्रप्रभ तीर्थङ्करका एक जैन मंदिर है। उसमें पांचों पाण्डवोंकी तथा भगवान् ऋषभदेवकी भी मूर्तियां हैं। मंदिरके पांचवें बड़े कमरेचे पत्थरमें आदीश्वर भगवानकी जीवन घटनायें मङ्कित हैं।
इस प्रकार इन तीनों द्रविड राज्योंमें प्राचीनकालसे जैन धर्म प्रधान रहा था। इन राजवंशोंके राजत्वका क्रम यह था कि पहले चोलराज प्रधान थे; उनके बाद चेर राजामों का प्रावल्य रहा । अन्तमें पाण्ड्यराज प्रमुख सत्ताधीश हुये। पाण्डयोंके उपरान्त पल्लव, चालुक्यादिकी प्रधानता हुई थी, जिनका इतिहास आगे लिखा जायगा। द्राविड़ राजाओंके राजत्वकालमें तामिळदेशका व्यापार भी
खुब उन्नतिपर रहा था । निस्सन्देह दक्षिणव्यापार। भारतका व्यापार तब एक ओर उत्तरभारतसे
होता था तो दूसरी ओर योरुपके देशोंसे भी १-जैसाई०, पृष्ठ २९-३० व गैमैकु०, भा० १ पृष्ठ ३७० ।
२-जमीसो०, भा॰ २५ पृष्ठ ८७-९४ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com