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१२४] संक्षिप्त जैन इतिहास । मंदिर और निषधि बनाने का भी रिवाज था। संग्राममें वीरगतिको प्राप्त हुये योद्धाओंकी स्मृतिस्वरूप 'वीरपाषाण' बनाये जाते थे जो 'वीरगल' कहलाते थे और उनपर लेख भी रहते थे। तामिल जातियोंके राजनैतिक नियम भी भादर्श थे। राजाको
राज्यप्रबन्धमें सहायता करने और ठीकराजनैतिक प्रबंध। ठीक व्यवस्था कराने के लिये पांच प्रका
की सभायें थीं अर्थात् (१) मंत्रियोंकी सभा, (२) पुरोहितोंकी समा, (३) सैनिक अधिकारियोंकी सभा, (४) राजदुतोंकी सभा और (५) गुप्तचरोंकी सभा । इन सभाओंमें कुछ -सदस्य जनताके भी रहते थे। उसपर पण्डितों और सामान्य विद्वानोंको अधिकार था कि जिस समय चाहें अपनी सम्मति प्रगट करें। ___ उपरोक्त सभाओंमें पहली समाका कार्य महकमे माल और दीवानीका प्रबन्ध करना था। दूसरी समा सभी धार्मिक संस्कारोंको सम्पन्न कराने के लिये नियुक्त थी। तीसरी सभाका कर्तव्य जिसका नायक सेनापति होता था, सेनाकी समुचित व्यवस्था रखना था। शेष दो समाओं के सदस्य राजाको संधि-विग्रहादि विषयक परामर्श देते थे। गांवोंके प्रबन्धके लिये 'गांव पंचायतें' थीं। न्याय निःशुल्क दिया जाता था-माजकलकी तरह उसके लिये 'कोर्टफीस' में 'स्टाम्प' नहीं लगता था। दण्ड व्यवस्था कड़ी थी-इसी कारण अपराध भी कम होते थे।
१-जमीसो० मा० १८ पृष्ठ २१४ । २-लासाइ० पृष्ठ २८९ व नमोसो. भा. १८ पृष्ठ २१४-२१५।
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