Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 135
________________ ११६.] संक्षिप्त जैन इतिहास | पाण्ड्य राजके समय में अर्थात् ईस्वी पूर्व तीसरी शताब्दिमें पाण्ड्य देशमें पानीका सीलाव भाया पाण्ड्य विजय । था, जिसमें कुमारी और पहरू लि नामक नदियोंका मध्यवर्ती प्रदेश जल मन होगया था। अपनी इस क्षतिकी पूर्ति पाण्ड्य राजने चोक-चेर राजाओंके कुन्डुर और मुत्तुर नामक जिलोंपर अधिकार जमाकर की थी । इस विजय के कारण यह पाण्ड्यराज नीलन्तरु तिरुवीर पाण्ड्यन् कहलाये थे । इन्हींके समय में द्वितीय 'संगम् साहित्य परिषद " हुई थी। पाण्डयवंशकी इस मुळ शाखा के अतिरिक्त दो अन्य शाखाओंका भी पता चलता है । ईस्वी बारुकुरुके पाण्ड्य । प्रथम शताब्दिमें मधुरा पाण्ड्यवंशके एक देव पाण्ड्य नामक राजकुमार तौलव देशान्तर्गत बारुकुरुमें आ बसे थे। और वहीं किसी जैनीकी कन्यासे उनका व्याह हुआ था । कालान्तर में वह बारुकुरुको राजधानी बनाकर शासनाधिकारी हुये थे । इनके उत्तराधिकारी इनके भानजे भूताल पाण्ड्य थे जो कदम्ब सम्राट्के आधीन राज्य करते थे । इसी समय से पाण्ड्य देशमें निज पुत्रके स्थानपर भानजेको उत्तराधिकारी होनेका नियम प्रचलित हुआ था । भूतालके पश्चात् क्रमशः विद्युम्न पाण्ड्य (सन् १४८ ई०), वीर पाण्ड्य (सन् २६२ ई० तक), चित्रवीर्य पाण्ड्य ( सन् २८१ ई०) देववीर पाण्ट्य 1 १- साईजे० भा० १ पृष्ठ ३८-३९ । , Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat . www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174