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बान्ध्र-साम्राज्य । [२१५ स्थान ऐसे हैं जिनसे प्रगट होता है कि वहां पाण्डवादि प्राचीन महापुरुष पहुंचे थे। दक्षिणके इन तीनों राज्योंमें पाण्ड्य राज्य प्रधान था। राज
वकी अपेक्षा ही नहीं बल्कि सभ्यता पाण्ड्य राज्य। और संस्कृति के कारण पाण्ड्यवंशको ही
प्रमुख स्थान प्राप्त है। उनका एक दीर्घकालीन राज्य था और उसमें उन्होंने देशको खूब ही समृद्धिशाली बनाया था। पाण्ड्यराज्य अति प्राचीन काल से रोमवालों के साथ व्यापार करता था । कहा जाता है कि पांड्य राजाने सन् २५ ई० पृ० में अगस्टस सीजरके दरबाग्में दुत भेजे थे। यूंही लोगोंके साथ नम श्रमणाचार्य भी यूनान गये थे। यूनानमें मारतीय कपड़ेकी बहुत खपत थी।
रोमन ग्रंथकार पीटर वीनसको इस बातका सन्देह था। यूनानी रमणियां भारतीय परिधान पहनकर निर्लज्जताकी दोषी होती हैं। वह भारतकी मलमलको 'बुनी हुई पवन ' के नामसे पुकारता है। लिनी एवं अन्य यूनानी लेखकोंने शिकायत की है कि यूनानका करोड़ों रुपया विलासिताकी वस्तुओंके मूल्यमें यूनानसे भारत चला जाता है । उस समय रुई, ऊन और रेशमके कपडे बनते थे। ऊनके वस्रों में सबसे नफीस चूहोंकी ऊन गिनी जाती थी। रेशमके कपड़े तीस प्रकारके थे। सारांश यह कि पांड्य राजत्वकालमें यहां विद्या, कला और विज्ञानकी खूब उन्नति हुई थी।
१-जमीसो० भा० २५ पृष्ठ ८८-८९।२-जमीसो०, भा०१८ पृ. २१३।३-इंहिक्वा०,भा०२ पृष्ठ २९३। -काभाइ०, पृष्ट २८७-२८८
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