Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 129
________________ संक्षिप्त जैन इतिहास | - अंगको उन्नत बनाया था । बंणिज - व्यापार खूब ही वृद्धिको पहुंचा था। पश्चिमसे जहाज आकर भृगुकच्छके बन्दरगाहपर टहरा करते थे । पैठनसे एक खास तरहका पत्थर और तगरपुर ( तेरापुर ) से मजलैन- साटने, मारकीन आदि कपड़ा एवं अन्य वस्तुयें भृगुकच्छ गाड़ियोंमें ले जाई जाती थीं और वहांसे जहाजोंमें लवकर पश्चिमके देशों यूनान आदिको चली जातीं थीं । सोपारा ; कल्याण, सेमुल्ल -इत्यादि नगर व्यापारकी मंडियां थीं। लोगोंके लिये आने जानेकी काफी सुविधा और उनकी रक्षाका समुचित प्रबन्ध था। भारतीय - व्यापारी निश्चित होकर देश-विदेश से व्यापार करके समृद्धको प्राप्त होहे थे । साहित्य | वाणिज्य के अनुरूप ही साहित्यकी भी आन्ध्रकालमें अच्छी उन्नति हुई थी । आन्ध्रवेश के अनेक राजा साहित्यरसिक थे और उनमें से किन्होंने स्वयं ही रचनायें भी रचीं थी । सम्राट् हाळकी 'गाथा सप्तशती' प्रसिद्ध ही है । परन्तु यह बात नहीं है कि आन्ध्र कालमें केवल प्राकृत भाषाकी ही उन्नति हुई हो, बल्कि संस्कृत भाषाको भी इस समय प्रोत्साहन मिला था। प्राकृत भाषाका प्रमुख -ग्रन्थ 'बृहत्कथा' था, जो महाकवि गुणाढ्य की रचना थी। . 8 कहा जाता है कि गुणाढ्यने कारणभूति नामक आचार्यसे जानकर कथासाहित्यका यह अद्वितीय ग्रन्थ रचकर सालिवाहन राजाको भेंट किया था। यह कारणभूति एक जैनाचार्य प्रगट होते हैं। उधर १-० पृष्ठ १७४- १०६ । २ - बगै० पृष्ठ १७०-१७१ । -३- 'वीर' का ' कहानी- अ ' देखो। ܘܙܕ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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