Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 127
________________ संचित जैन इतिहाँस । नगर आन्ध्र राज्यके अंतर्गत थे। आन्ध्रोंकी सेना में एक लाख प्यादे, दो हजार सवार और एक हजार हाथी थे। यूनानी लेखकोंने इन्हें एक बलवान शासक लिखा है। अशोक के मरते ही इन्होंने अपने - राज्यको बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया और सन् २४० या २३० ई० पूर्वके लगभग पश्चिमी घाट पर गोदावरीके उद्भवके समीप नासिकनगर उनके राज्य में सम्मिलित होगया। धीरे-धीरे सारे क्षक्षिण प्रदेश पर समुद्रसे समुद्र पर्यन्त उनका राज्य होगया ।' कहते हैं, मगधको भी मन्त्रोंने, खारवेल के साथ जीत लिया था । कलिङ्गके जैन सम्राट् खारवेलने आन्ध्र सम्राट् शतकर्णीको परास्त किया था। इसीसे अनुमानित है कि मगध विजय में वह खारवेल के साथ रहे थे। उनके समय में पश्चिम की ओर से शक छत्रपोंके आक्रमण भारत पर होते थे । आन्धोंने उनसे बचने के लिये अपनी राजधानी महाराष्ट्र के हृदय प्रतिष्ठान ( पैठन) में स्थापित की थी। इनका पहला राजा सिसुक या सिन्धुक नामक था । इनका सारा राजत्वकाल करीब ४६० वर्ष बताया जाता है, जिसमें इनके तीस राजाओंने राज्य किया था । * इस वंश के राजाओं में गौतमी पुत्र शातकर्णि नामक राजा प्रख्यात था । नासिकके एक शिलालेगौतमीपुत्र शातकर्णि। खमें उसे 'राजाधिराज' और अशिक, अश्मक मूलक, सुराष्ट्र, कुकुर, अपरान्त, अनूप, विदर्भ और अकरावन्ती नामक देशों पर शासन करते लिखा [ ܕ १-०, पृ० १५४ - १७२ । २ - कुऐई०, पृ० १५ । ३ - जवि - मोसी० भा० ३ पृ० ४४२ । ४ - लाभाइ०, पृ० १९९ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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