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आन्ध्र-साम्राज्य लेखसे यह स्पष्ट है कि दक्षिणके चेर. चोल. पाण्ड्य राज्य पहलेसे ही स्वाधीन थे और मौर्योके बाद मान्ध्रवंशी बलवान होगये ।
आन्ध्र-साम्राज्य। नर्मदा और विध्याचलके उपरान्त दक्षिण दिशाके सब ही
प्रांत 'दक्षिणापथके नामसे प्रसिद्ध थे।' दक्षिण भारतके परन्तु राजनैतिक दृष्टिसे उनके दो भाग दो भाग। हो जाते हैं। पहले भागमें वह प्रदेश
माता है जो उत्तरमें नर्मदा तथा दक्षिणमें कृष्णा और तुङ्गभद्राके बीच है। और दूसरे भागमें वह त्रिको णाकार भूभाग आता है जो कृष्णा और तुगभद्रा नदियोंसे भारम्भ होकर कुमारी अंतरीपतक जाता है । यही वास्तवमें तामिक अथवा द्राविड़ देश है। इन दोनों भागोंकी अपेक्षा इनका इतिहास भी अलग-अलग होजाता है । तदनुसार यहां हम मौर्योके बाद पहले भाग पर अधिकारी आन्ध्रवंशके राजाओंका परिचय लिखते हैं। अशोकके उपरांत मान्ध्रवंशके राजा स्वाधीन होगये थे। यह
लोग शातवाहन अथवा शालिवाहनके आन्ध्र राजा। नामसे भी प्रसिद्ध थे। और इनके
राज्यका मारम्भ ईस्वी पूर्व ३०० के लगभग हुआ था। चंद्रगुप्तके समयमें तीस बड़े बड़े प्राचीरवाले • १-गैव०, पृ०१३३ यूनानियोंने इसे 'दखिनवदेस' (Dakhinar bades) कहा था । २-मैकु०, पृष्ठ १५ । ३-कामाइ०, पृ.१९१ ।
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