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१०२) संक्षिप्त जैन इतिहास । केवल एक कलिङ्गका युद्ध लड़ा था परन्तु उसके शासन लेख मैसूर तक मिलते हैं । इस प्रकार मौर्योका शासन दक्षिण भारतमें मैसुर प्रान्त तक विस्तृत था। सम्राट अशोकके धर्मशासन-लेख मैसूरके पति निकट मिले
है। ब्रह्मगिरि, सिद्धपुर, जटिङ्ग, रामेश्वर सम्राट अशोक । पर्वत, कोप्पल और बेरुन्गड़ी नामक
स्थानोंसे उपलब्ध अशोक लेख वहांतक मौर्यशासनके विस्तारके द्योतक हैं। किन्तु 'ब्रह्मगिरि के धर्म-लेखमें सम्राट् माता-पिता और गुरुकी सेवा करनेपर जोर देते हैं, यह एक खास बात है। यह शायद इसलिये है कि यह धर्मलेख मैसूरके उस स्थानसे निकट भवस्थित है जहांपर अशोकके पितामह सम्राट चन्द्रगुप्तने आकर तपस्या की थी। श्रवणबेलगोलसे ही चंद्रगुप्तने स्वर्गारोहण किया था।
भशोकने अपने पितामहके पवित्र समाधिस्थानकी वन्दना की थी। मालम होता है, इसीलिये उन्होंने ब्रह्मगिरिक धर्मलेसमें खास तौरपर गुरु और माता-पिताकी सेवा करनेकी शिक्षाका समावेश किया था। प्रो० एस० भार० शर्मा यह प्रगट करते हैं। और यह हम पहले ही प्रमाणित कर चुके हैं कि बौद्ध होनेसे पहले अशोक जैनी था और अपने शेष जीवनमें भी उसपर जैन धर्मका काफी प्रभाव रहा था। अशोकने जैनोंका उल्लेख निर्ग्रन्थ
और श्रमण नामसे किया था। .: १-मच० पृष्ठ ९४-९६ । २-संहि०, मा० २ खण्ड १ पृष्ठ
२२९-२० । ३-जैसई., मध्याय २।
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