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भगवान महावीर बर्द्धमान। [९३ और उनके शिष्योंका ही विहार हुमा; परन्तु विंध्याचलके निकटवर्ती प्रदेश अर्थात् दक्षिणा पथमें भगवान महावीरका शांति-सुखविस्तारक समोशरण निस्सन्देह अवतरित हुमा था।
जब लगभग तीस वर्षकी अवस्थामें उन्होंने गृह-त्याग करके दिगम्बर मुनिका वेष धारण किया तब वे उत्तर और पूर्वीय भारतमें ही विचरते रहे। उधर पूर्व-दक्षिणमें लाढ़-वज्रभूमि मादि देशोंमें भगवान्ने विहार किया था और इधर पश्चिम दक्षिणमें वे उज्जैन तक पहुँचे थे। उज्जैन के महाकाल स्मशान भूमिमें जब भगवान् विराज रहे थे, तब उनके अलौकिक ध्यान ज्ञान-मभ्यासको सहन न करके रुद्र नामक व्यक्ति ने उन पर घोर उपसर्ग किया था। इस घटनाके बाद भगवान का विहार उत्तर-पूर्व दिशाको हुआ था। ___मन्ततः जम्मकप्रामके निकट ऋजुकूला नदीके तट पर उन्होंने घोर तपश्चरण किया था और वहीं उनको केवलज्ञानकी सिद्धि हुई थी। यह पवित्र स्थान माधुनिक झिरियाके निकट भनुमान किया गया है। केवली तीर्थकर होकर भगवान ने राजगृहकी ओर प्रस्थान किया था और वहांसे वे प्रायः सर्वत्र उत्तर भारतमें विचरते रहे थे । ठीकसे नहीं कहा जासकता कि वे कहाँ-कैसे और कब पहुँचे थे, परन्तु इसमें संशय नहीं कि जब वे सूरसेन, दशार्ण मादि
१-शायद यही कारण है कि दक्षिण भारतके नैनोंने अपने संघको 'मूलसंध' कहा है। अतः जैनधर्मके यथार्थ दर्शन दक्षिण भारतीय साहित्य में ही होना संभव है।
२-'वीर' मा० ५ पृष्ठ ३३४-३३६ ।
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